देश में मुस्लिम के तमाम इलाकों से हिंदुओं का भागना धीरे धीरे बड़ी समस्या बनती जा रही है। कई जगहों पर हिंदुओं की जमीन पर कब्जा करके उनको भागने पर मजबूर करने की खबरें भी सामने आ रही हैं। लेखक-निर्देशक मुकुल विक्रम की फिल्म ‘आखिर पलायन कब तक’ इसी मुद्दे पर आधारित है। यह फिल्म इस बात पर भी जोर देती है कि अगर हिंदू इलाकों में एक मुस्लिम परिवार रह सकता है, तो मुस्लिम इलाकों से हिंदू परिवार सुरक्षित क्यों नहीं रह सकता?
फिल्म की शुरुआत एक सिर कटी लाश मिलने से होती है। पुलिस को जब इसकी सूचना मिलती है, तो इंस्पेक्टर सूरज शर्मा और उसकी टीम हवलदार अकरम और राजेश नेगी के साथ घटनास्थल पर पहुंचते हैं। और पूरे मामले की छानबीन करते हैं। उन्हें पता चलता है कि पास में ही रहने वाले दुकानदार सुनील बिष्ट का पूरा परिवार लापता है। पुलिस की छानबीन जारी ही रहती है उसी वक्त एक और लाश मिलने की खबर मिलती है। इंस्पेक्टर सूरज शर्मा अपनी टीम के साथ जब घटना स्थल पर पहुंचते हैं तो देखते हैं कि मंदिर के पुजारी बेहोश हैं, जिन्हें लोग मृत समझ रहे थे। पुजारी के होश में आने के बाद इंस्पेक्टर सूरज को एक विशेष धर्म द्वारा फैलाये षडयंत्र के बारे में धीरे -धीरे जानकारियां मिलती हैं और उसी इलाके का रसूखदार बदरुद्दीन कुरैशी कहीं ना कहीं इस घटना के पीछे मजबूत ढाल बनकर खड़ा हुआ है। आगे की कहानी सिर कटी लाश और सुनील बिष्ट के लापता परिवार की खोज के इर्द -गिर्द घूमती है, इस केस में वही के रहने वाले पत्रकार मुकेश यादव पुलिस की काफी मदद करता है।
लेखक-निर्देशक मुकुल विक्रम की फिल्म ‘आखिर पलायन कब तक’ एक संवेदनशील और ज्वलनशील मुद्दे पर बनी फिल्म है। लेकिन फिल्म की कमजोर कहानी ने पूरा खेल बिगाड़ दिया। इंटरवल से पहले फिल्म की कहानी छोटे परदे के सीरियल क्राइम पेट्रोल के तर्ज पर चलती है। मुस्लिम बहुल इलाके से हिन्दू समुदाय के लोग डर कर अपना घर छोड़कर भाग रहे हैं, पर भागने की असल वजह और मजबूरी को वह पर्दे पर पेश नहीं कर पाए।
इस फिल्म को बनाने वाली सोहनी कुमारी ने फिल्म में सुनील बिष्ट की बेटी की भूमिका निभाई है।लेकिन कलाकारों को चुनने में उन्हें थोड़ी और मेहनत करनी चाहिए थी। अभिनेता राजेश शर्मा ने फिल्म में सुनील बिष्ट की भूमिका निभाई है। इंटरवल से पहले की उनकी एक्टिंग देखकर ऐसा लगा कि जल्दी से इस फिल्म की शूटिंग किसी तरह से निपटाकर दूसरी फिल्म की शूटिंग पर उन्हें निकलना है। हालांकि, इंटरवल के बाद उनकी एक्टिंग में जो भावनात्मक पहलू उभर कर आया वह निश्चित रूप से काबिले तारीफ है। फिल्म के बाकी कलाकार नए नजर आते हैं। फिल्म की सिनेमैटोग्राफी, एडिटिंग और म्यूजिक भी सामान्य से कमतर ही है।