पैर में कांटा चुभ जाए तो दर्द से इंसान रो देता है। यहां तो बिना बेहाेश किए नार्मल डिलीवरी से बड़ा दर्द दिया जा रहा है। नसबंदी के सीजन में टारगेट पूरा करने के लिए कुछ ऐसा ही खेल चल रहा है। खगड़िया में महिलाओं के साथ जो हुआ, वह किसी हैवानियत से कम नहीं है। यहां एनेस्थीसिया के डॉक्टर की 50 रुपए के चक्कर में महिलाओं को नार्मल डिलिवरी से बड़ा दर्द दिया गया।
बचा ली बेहोशी के डॉक्टर की फीस
खगड़िया के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र अलौली में सर्जन डॉ मनीष कुमार ने 23 मरीजों को नसबंदी के लिए तैयार करने का आदेश दिया। इसके बाद स्वास्थ्य कर्मियों ने एनेस्थीसिया की सूई लगा दी। सर्जरी से 30 मिनट पहले लगने वाले इंजेक्शन का असर अभी हुआ भी नहीं था कि सर्जन ने डेढ़ इंच का टांका लगा दिया, दर्द से तड़प रही मरीजों की फैलोपियन ट्यूब ब्लॉक कर एक और दर्द दिया गया। इसके बाद 3 टांके का दर्द तो बर्दाश्त करना मुश्किल था…..डिलीवरी जैसे दर्द को सहने वाली महिलाएं बेरहम स्वास्थ्य सिस्टम से काफी हिम्मती रहीं, क्योंकि ऐसे दर्द में तो दिल भी बैठ जाता है। खगड़िया में जहां घटना हुई वहां बेहोशी की दवा का एक्सपर्ट ही नहीं था, यह पहला सेंटर नहीं है जहां बिना एनेस्थीसिया पूरे असर के ही सर्जरी की गई है।
अमूमन पूरे राज्य में ऐसा ही खेल चल रहा है। सरकार की तरफ से एक केस पर 50 रुपए बेहोशी के डॉक्टर की फीस रखी गई है, लेकिन ज्यादतर संस्थानों में सर्जन या फिर बेहोशी के लिए अनट्रेंड स्वास्थ्य कर्मी ही इंजेक्शन लगा देते हैं। सुन्न होने का पता बेहोशी का डॉक्टर ही लगा पाता है, इतना ही नहीं अगल अलग मरीजों में डोज भी वही रिस्पांस के हिसाब से तय करता है। खगड़िया में भी 23 महिलाओं की नसबंदी में बेहोशी के डॉक्टर की 50 रुपए फीस बचा लिया गया। राज्य कार्यक्रम पदाधिकारी डॉ सज्जाद का कहना है कि जांच के बाद मामला स्पष्ठ होगा, संभावना है कि नसबंदी के दौरान लोकल एनेस्थीसिया दिया गया लेकिन मात्रा सही नहीं होने से समस्या हुई हाेगी। मामले की जांच कराई जा रही है। डॉ सज्जाद का कहना है कि लोकल एनेस्थीसिया में बेहोशी के डॉक्टर की जरुरत नहीं होती है, ऐसे में बड़ा सवाल तो ये है कि बेहाेशी के डॉक्टर का पैसा कौन लेता है।