जैसा की आप सभी जानते है की इसरो ने इस साल के हाल ही के शनिवार को अपना दूसरा उपग्रह लांच किया है। इसका नाम इन्सैट-3DS है जो की मौसम से जुड़ी जानकारी देगा।
इस साल के अपने दूसरे मिशन के तहत इसरो (भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन) ने 17 फरवरी को एक नया उपग्रह लॉन्च किया. इसका नाम इन्सैट-3DS है, जो मौसम से जुड़ी सटीक जानकारी प्रदान करेगा.इसकी लॉन्चिंग GSLV F14 रॉकेट द्वारा आंध्र प्रदेश के श्री हरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से हुई.
इन्सैट-3DS सैटेलाइट का मकसद वर्तमान में मौसम संबंधी सेवाएं दे रहे INSAT-3D और INSAT-3DR उपग्रह की सेवाओं को तो बनाए रखना है साथ ही, उन्नत मौसम संबंधी अनुमानों, मौसम पूर्वानुमानों और आपदा संबंधी चेतावनियों के लिए भूमि और सागर की सतहों की निगरानी, सैटेलाइट आधारित खोज और बचाव जैसे कार्य भी सुनिश्चित करना है.
पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अधिकारियों के मुताबिक, इन्सैट-3DS से प्राप्त मौसम संबंधी डेटा का उपयोग मौसम विभाग, नेशनल सेंटर फॉर मीडियम रेंज वेदर फोरकास्टिंग (NCMRWF), इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेटेओरोलॉजी (IITM), नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओशन टेक्नोलॉजी (NIOT) और इंडियन नेशनल सेंटर फॉर ओशन इंफोर्मेशन सर्विसेज (INCOIS) द्वारा मौसम संबंधी रिसर्च और सेवाओं को उन्नत बनाने के लिए किया जाएगा.
यह उपग्रह उस कार्यक्रम का हिस्सा है जिसे इसरो और भारतीय मौसम विज्ञान (आईएमडी) ने देश की जलवायु सेवाओं के नेटवर्क को बेहतर बनाने के लिए आपसी सहयोग के रूप में शुरू किया था. इसके तहत तीन पृथ्वी अवलोकन उपग्रह (ऑब्जर्वेशन सैटेलाइट) लांच किए जाने थे. पहला उपग्रह INSAT-3D साल 2013 में लांच हुआ. INSAT-3DR इस कड़ी में दूसरा था जिसे सितंबर, 2016 में लांच किया गया. और अब तीसरा और अंतिम उपग्रह इन्सैट-3DS है.
उपग्रहों के प्रक्षेपण के लिए इसरो मुख्य रूप से तीन रॉकेटों का प्रयोग करता है. GSLV, PSLV और LVM3. इन्सैट-3DS उपग्रह इसी GSLV F14 रॉकेट से लॉन्च हुआ. इसका अतीत थोड़ा ‘नटखट’ रहा है. नटखट इस मामले में कि इन्सैट-3DS लांच होने से पहले इस रॉकेट से कुल 15 बार लॉन्चिंग की प्रक्रिया हुई, लेकिन चार मर्तबा यह असफल रहा. यानी हर चार में से एक बार यह फेल साबित हुआ. यह किसी भी रॉकेट के फेल होने की सर्वाधिक दर है. इन्सैट-3DS की लॉन्चिंग इसका 16वां अभियान था.
चूंकि सफल प्रक्षेपणों के मामले में GSLV का ट्रैक रिकॉर्ड PSLV जितना अच्छा नहीं रहा है, इसलिए इसरो के एक पूर्व अध्यक्ष ने इसे “नॉटी बॉय” का उपनाम दे दिया. हालांकि PSLV की तुलना में GSLV कहीं अधिक शक्तिशाली रॉकेट है. यह PSLV से ज्यादा भारी उपग्रहों को कैरी कर सकता है. पर समस्या इसके क्रायोजेनिक इंजन में आती रही है जो उड़ान के तीसरे और अंतिम चरण में शक्ति प्रदान करने के लिए जिम्मेदार होती है.
भारत ने बाद में ‘रिवर्स इंजीनियरिंग’ के आधार पर इस इंजन को अपने तईं इस्तेमाल किया. यही इंजन GSLV रॉकेटों में इस्तेमाल होते रहे हैं. लेकिन ये इसरो के लिए कुछ परेशानी उत्पन्न करने वाले रहे हैं. हालांकि GSLV ने अब 10 सफल उड़ानें तय कर ली हैं. इसलिए अब इसे ‘मैच्योर ब्वॉय’, ‘आज्ञाकारी लड़के’ (ओबिडियंट ब्वॉय) और ‘स्मार्ट ब्वॉय’ जैसे उपनामों से भी पुकारा जा रहा है.