उत्तराखंड- प्रदेश सरकार ने सोमवार को कक्षा 9वीं से लेकर 12 तक के स्कूल तो खोल दिए। मगर शिक्षा विभाग के हाल तो निराले हैं। कहीं स्कूलों को बच्चों के बैठने की व्यवस्था नहीं तो कहीं छत नहीं। जहां छत है, उसके हाल इतने बुरे हैं कि बारिश में भी बच्चों को हाथ में छाता थामकर अपना भविष्य बनाना पड़ता है। इतना ही नहीं शिक्षा विभाग के अधिकारी हालात से रूबरू हैं, लेकिन उसके बाद भी बच्चों की जान के साथ खिलवाड़ करने पर तुले हैं। कुछ ऐसा ही मामला सोमवार को जिला मुख्यालय से महज 10 किमी. की दूरी पर स्थित राजकीय इंटर कालेज साल्ड में देखने को मिले।
जहां कोविड काल के बाद उत्सकुता के साथ छात्र-छात्रायें स्कूल तो पहुंचे। लेकिन स्कूल की हालात देख उनके आंसू टपकने लगे। करीब आजादी के समय से बने इस पुराने टीनशेड स्कूल के हालात इस कदर हैं कि यहां छत को टिकाने के लिए लगाई गई बल्लियां टूट चुकी हैं। तो वर्षों पुरानी टीनशेड पर बड़े-बड़े छेद होने के कारण बारिश का पानी सीधे छात्रों के ऊपर गिर रहा है। जिसके चलते सभी कक्षायें , लैब सहित स्टाफ रूम में पानी से लबालब हो जाता है। स्कूल में वर्चुअल क्लास के कंप्यूटर त्रिपाल से ढके हुए हैं।
स्थानीय लोगों ने कहा कि 13 वर्ष पूर्व विद्यालय के नए भवन के लिए 98 लाख की धनराशि आई, जिसमें से 3 वर्ष में मात्र भवन के पिलर और ढांचा बना, लेकिन उसके 10 साल बाद भी आजतक भवन नहीं बन पाया और निर्माणधीन आधा भवन भी खंडहर बन गए हैं। ऐसे में बच्चे कैसे पठन पाठन करेंगे शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने इस पर कभी विचार नही किया। ऐसे में मॉडल और हाईटेक शिक्षा का दावा करने वाला सिस्टम और शिक्षा के मामले में प्रदेश को चौथे स्थान पर पहुंचाने वाली डबल इंजन सरकार किस तरह बच्चों के भविष्य को संवार रही है, इससे अंदाजा लगाया जा सकता है।