कोरोना की वजह से हुई मौतों के मामले में मुआवजे को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को उत्तर प्रदेश सरकार को फटकार लगाई और कहा कि इसे हर जिले में स्थानीय अखबारों में विज्ञापन देना चाहिए। विज्ञापनों पर असंतोष व्यक्त करते हुए न्यायमूर्ति एम आर शाह और न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना की पीठ ने कहा कि पीड़ितों को एक वेब पोर्टल के बारे में बताया जाना चाहिए, जिस पर वे मुआवजा पाने के लिए ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं।
बेंच ने कहा, ”आप दूसरे राज्यों की तरह विज्ञापन क्यों नहीं देते हैं कि यह पोर्टल है, यह एक शिकायत निवारण समिति है और आप संपर्क कर सकते हैं। हर जिले में आपको स्थानीय अखबारों में विज्ञापन देना चाहिए, शिकायत निवारण समिति उनके विवरण, पोर्टल विवरण आदि के साथ। हमें किसी अखबार में कोई विज्ञापन नहीं मिलता।”
उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश हुए वकील अर्धेंदुमौली कुमार प्रसाद ने बेंच को बताया कि सरकार को कुल 25,933 आवदेन मिल हैं और इनमें से 20,060 को भुगतान किया जा चुका है। इस पर बेंच ने स्थानीय अखबारों में दिए विपज्ञान को लेकर पूछा। प्रसाद ने कहा कि विज्ञापन दिए गए हैं , जिसमें फोन नंबर दिए गए हैं। यह तहसीलदार का नंबर है। इस पर बेंच ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा, ”कौन उठाता है टोल फ्री नंबरों को। हम आपको अभी कॉल करके देखने को कहेंगे। आप अभी कॉल करो। कॉल करो तहसीलदार को।” इसके बाद कोर्ट ने कहा कि वह आदेश पास करेगा।
महाराष्ट्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि पिछले सोमवार तक 85,279 आवेदन पाए गए हैं। सर्वोच्च अदालत ने कहा कि 85,000 आवेदन आए हैं और करीब 1,658 दावों को मंजूरी दी गई है। बेंच ने कहा, ”यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि केवल 1,658 को मुआवजा दिया गया है। हम महाराष्ट्र राज्य को उन सभी आवेदकों को 50,000 की मुआवजा राशि का भुगतान 10 दिन में करने का निर्देश देते हैं जिन्होंने आज तक आवदेन किया है।”
गुजरात के विज्ञापन सामग्री पर सुप्रीम कोर्ट ने संतोष जाहिर किया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दूसरे राज्य भी इस तरह के विज्ञापनों का अनुसरण करना चाहिए और अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी को गुरुवार तक संबंधित राज्यों के वकीलों को विज्ञापनों के नमूने प्रस्तुत करने को कहा। गुजरात के वकील ने कहा कि नंबर के प्रचार प्रसार से आवेदनों की संख्या बढ़ी है। सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले गुजरात को भी फटकार लगाई थी।