न्यूज़ डेस्क : (GBN24)
हमारा देश शरणार्थियों के मामले में हमेशा नर्म रवैया रखता रहा. यहां लाखों की संख्या में कई देशों के शरणार्थी हैं. अब सीएए बनने के बाद पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, ईसाई और पारसी धर्म के ऐसे लोगों को भारतीय नागरिकता मिल सकेगी, जो 31 दिसंबर 2014 तक या उससे पहले भारत आ चुके. इस कानून पर मिली-जुली बातें कही जा रही हैं. दो खेमे यहां भी हो चुके. लेकिन देखने वाली बात ये है कि विरोध कर रहे मुस्लिम देशों में भी नागरिकता के लिए काफी पापड़ बेलने पड़ते हैं. पाकिस्तान से लेकर कतर तक क्या हैं नागरिकता के नियम, क्या मुस्लिमों को आसानी से मिल जाती है नागरिकता?
भारत में नागरिकता संशोधन कानून (CAA) लागू हो चुका है. इसके तहत 3 पड़ोसी मुस्लिम देशों की माइनोरिटी के लिए देश की नागरिकता के रास्ते आसान हो गए. इस पहल के बीच जानिए, दुनिया के सबसे अमीर देशों में शुमार मुस्लिम-बहुल देश कैसे देते हैं नागरिकता. क्या सताए हुए बाहरी मुस्लिमों को यहां आसानी से शरण मिल सकती है?
पूरी दुनिया में नागरिता के सिंपल रूल क्या हैं ? समझते हैं
एक है, राइट ऑफ़ SOIL. ये कहता है कि बच्चे का जहां जन्म हुआ हो, वो अपने आप वहां का नागरिक बन जाता है. दूसरा नियम है- राइट ऑफ ब्लड. मतलब आपके पेरेंट्स जहां से हैं, आप भी वहीं के कहलाएंगे.
तीसरा नियम भी है. इसमें किसी भी देश का नागरिक दूसरे देश का सिटिजन हो सकता है, लेकिन इसके लिए उसे नेचुरलाइजेशन का पीरियड बिताना होगा.
ये वो समय है, जो आप किसी देश में बिताते हैं. ये 5 सालों से लेकर काफी लंबा भी हो सकता है.
अब समझते हैं की किन देशों में जन्म के आधार पर नागरिकता मिलती हैं ?
30 से ज्यादा देश बर्थ राइट सिटिजनशिप को मानते हैं. इसमें अमेरिका सबसे ऊपर है. उसने 19वीं सदी में ही राइट ऑफ सॉइल की बात की थी, और अपने यहां जन्मे बच्चों को अपना नागरिक बताने लगा था. इसके अलावा कनाडा, अर्जेंटिना, बोलिविया, इक्वाडोर, फिजी, ग्वाटेमाला, क्यूबा और वेनेजुएला जैसे कई मुल्क ये अधिकार देते रहे. हालांकि कई जगहें ज्यादा सख्त हैं. जैसे कई देशों में नागरिकता के लिए बच्चे के माता-पिता दोनों को वहां का होना चाहिए.
अब हम रुख करते है मुस्लिम देशों की ओर, वहा कैसे मिलती है नागरिकता कितना कठिन हैं –
इसमें सबसे पहले पड़ोसी देशों को देखते हैं. पाकिस्तान में माइनोरिटी लगातार कम हो रही है. यहां से जबरन धर्म परिवर्तन की भी बातें आती रहीं. भारत के हर नियम-कानून पर परेशान होने वाले पाकिस्तान में मुस्लिम धर्म का होने से नागरिकता नहीं मिल जाती. विदेशी वहां कम से कम 4 साल बिताने के बाद ही CITIZEN SHIP के लिए आवेदन कर सकते हैं.
इसमें भी कई नियम हैं. उसने ऐसी कोई पहल नहीं कि अगर साउथ एशिया के किसी देश में मुस्लिम परेशान हैं, तो उसके यहां आ जाएं. यहां तक कि उसने अफगानिस्तान के भी लाखों लोगों को कुछ महीने पहले ही निकाल दिया.
हमारे पडोसी देश बांग्लादेश में ब्लड राइट चलता है
अगर किसी के पेरेंट्स का जन्म वहां हुआ हो, तो नागरिकता मिल जाएगी. हालांकि फिलहाल सीरियाई कैंप में रह रही शमीमा बेगम को बांग्लादेश ने अपनाने से मना कर दिया था, क्योंकि उसके लिंक इस्लामिक स्टेट से पाए गए. बांग्लादेश भी मुस्लिम-मेजोरिटी है, लेकिन यहां भी मुसलमान होने के चलते किसी को सिटिजनशिप नहीं मिलती.
अगर आप कतर में नागरिकता लेने की कतार में हों तो पक्का मान लीजिए कि इसके नियम दुनिया में सबसे कड़े हैं.
अब बात करें, अमीर मुस्लिम देशों की. इसमें कतर की नागरिकता पाना बहुत मुश्किल है. कतरी नागरिकता के लिए वो अप्लाई कर सकता है, जिसके पेरेंट्स में से कोई एक कतर में जन्मा हो. इसके अलावा अगर आप विदेशी हों तो कतरी सिटिजन कहलाने के लिए 25 साल का इंतजार करना पड़ सकता है. यहां NATURALIZATION की प्रक्रिया काफी लंबी है.
अब बात कर लेते है इराक और ईरान में क्या हैं नियम
ईरान में जन्म के आधार पर सिटिजन कहलाते हैं. इसके अलावा अगर फॉरेन नेशनल वहां बसना चाहें तो उन्हें कम से कम चार सालों तक देश में रहना होगा. इराक में भी यही नियम लागू है. यहां भी ऐसा नहीं है कि सताए हुए मुस्लिमों को शरण मिल जाए. जैसे गाजा का ही मामला लें तो लगभग सारे मुस्लिम देशों ने उसके लिए आवाज तो उठाई, लेकिन शरण नहीं दी.