न्यूज़ डेस्क : (GBN24)
स्नेहा श्रीवास्तव
प्रेम और प्यार, ये दो शब्द हमारे जीवन के महत्वपूर्ण हिस्से हैं। हालांकि, देखा जाए तो इन दोनों शब्दों का इस्तेमाल हम एक दूसरे की जगह कर देते हैं, लेकिन अगर इनका सही अर्थ जाने तो दोनों में काफी गहरा और महत्यपूर्ण अंतर है। इन दोनों शब्दों के बीच अंतर समझने के लिए हमे इनके भावनात्मक, संस्कृतक और मनोवज्ञानिक पहलुओं को भी समझने का प्रयास करना होगा।
क्या है प्रेम का अर्थ
प्रेम एक व्यापक और गहरा भाव है। यह केवल रोमांटिक व शारीरक आकर्षण नहीं है। अगर प्रेम के स्तम्भ की बात की जाये तो इसके कुल चार स्तम्भ होते हैं जिनमे आत्मीयता, निस्वार्थ, त्याग शामिल होता है। जिसमे हम सामने वाले व्यक्ति से निस्वार्थ प्रेम करते हैं, उससे किसी अन्य चीज़ की अपेक्षा नहीं करते है।
हम जिस व्यक्ति से प्रेम करते हैं, उनके अच्छे गुणों को सरहरना व उनकी कमियों को अपनी कमी समझ अपनाना चाहिए। प्रेम बहुत है विशेष चीज़ होती है यह भावना हमारे अंदर समय के साथ और भी मजबूत होती रहती है। एक दूसरे को समझना उनके विचारो का सम्मान करना ही प्रेम है। अपने माता पिता की संतान के लिए निस्वार्थ प्रेम, दोस्ती में गहरा प्रेम, दम्पंती में अटूट प्रेम इसके कुछ उदाहरण है।
प्यार का अर्थ समझिये
प्यार एक उत्साही भावना होती है जो युवावस्था में अधिक देखने को मिलती है। यह ज्यादातर रोमांस, शारीरिक आकर्षण, छुअन से जुड़ा होता है। यह समय के साथ काफी तेज़ी से उत्तेजित होती है और खासकर प्राम्भिक समय में। लेकिन समय के साथ यह बदल भी सकता है, क्यूंकि प्यार अधिकतर तात्कालिक और उत्तेजित होता है जो समय रहते खत्म हो सकता है।
हम प्यार को एक तरह से आकर्षण भी बोल सकते हैं क्यूंकि आज की जनरेशन में व्यक्ति को किसी न किसी से प्यार हो जाता है, लेकिन यह प्यार एक तरह का आकर्षण होता है जो समय रहते बदल जाता है। यह भावना उमड़ती तो काफी तेज़ी से है, लेकिन वो प्यार रूपी फूल कब मुरझा जाता है पता ही नहीं चलता। प्यार में व्यक्ति हमेशा अपने प्रियजन की जरूरतों और इच्छा को अपनी प्राथमिकता के ऊपर रखता है, लेकिन यह हमेशा ऐसा रहे ये संभव नहीं होता।