बंगाल में मुस्लिम बनेंगे किंगमेकर? ISF के किस ऐलान से वाम को राहत, TMC को आफत, ओवैसी को भी बड़ा झटका

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पश्चिम बंगाल में भाजपा की दमदार दस्तक के चलते आगामी विधानसभा चुनावों में मुस्लिम वोटों की अहमियत बढ़ गई है। एक तरफ जहां तृणमूल कांग्रेस का सारा दारोमदार मुस्लिम वोटों पर टिका है, वहीं कांग्रेस-वाम गठबंधन और एआईएमआईएम भी इनमें सेंध लगाने के लिए तैयार बैठा है। हालांकि इस बीच नवगठित इंडियन सेक्युलर फ्रंट (आईएसएफ) के वाम-कांग्रेस गठबंधन में आने का ऐलान करके एआईएमआईएम को तगड़ा झटका दिया है। लेकिन फ्रंट ने तृणमूल के लिए चुनौती पैदा कर दी है।

एआईएमआईएम के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी इंडियन सेक्युलर फ्रंट की मदद से राज्य में शानदार एंट्री करना चाहते थे। फ्रंट के प्रमुख फुरफुरा शरीफ के मौलाना अब्बास सिद्दीकी से उनकी वार्ता भी चल रही थी। लेकिन वाम-कांग्रेस गठबंधन ने फ्रंट को लपक लिया। बस अब सिर्फ गठबंधन के दलों में सीटों का बंटवारा होना बाकी है।

राजनीतिक जानकारों का मानना है कि मुस्लिम वोटों का विभाजन होता है या नहीं, यह कहना अभी मुश्किल है। लेकिन इतना तय है सेक्युलर फ्रंट के रुख से ओवैसी की राह अब आसान नहीं है। हालांकि फ्रंट ने कहा है कि जिन सीटों पर ओवैसी की पार्टी चुनाव लड़ेगी, वहां वह अपना उम्मीदवार खड़ा नहीं करेगा लेकिन वहां लेफ्ट या कांग्रेस का उम्मीदवार खड़ा हो जाएगा। इसलिए इस बात का कोई मतलब नहीं है। सिर्फ फ्रंट किसी मुस्लिम पार्टी का विरोध करते हुए नहीं दिखना चाहता है।

एक सौ से अधिक सीटों पर हार-जीत तय करते हैं मुस्लिम मतदाता
दरअसल, राज्य में 100-110 सीटें ऐसी हैं जिन पर यदि मुस्लिम वोट एकजुट होकर पड़ते हैं तो वह हार-जीत तय कर सकते हैं। मुस्लिम तृणमूल का एक बड़ा वोट बैंक रहा है। हालांकि, जिस प्रकार से भाजपा ने हिन्दुत्व का एजेंडा चलाया है, उससे तृणमूल को मुस्लिम वोटों के एकजुट होकर मिलने की उम्मीद है। लेकिन फुरफुरा शरीफ के मौलाना अब्बास सिद्दीकी के नेतृत्व वाले आईएसएफ के तृणमूल विरोधी रुख से कई सीटों पर मतों के विभाजन का खतरा भी पैदा हो गया है। भले ही वे मत ओवैसी को नहीं जाएं लेकिन यदि लेफ्ट-कांग्रेस गठबंधन के उम्मीदवारों को भी जाते हैं तो तृणमूल को नुकसान होना तय है।

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