Thursday, November 30, 2023
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भूकंप से 10 फीट खिसक गया तुर्किये

तुर्किये में सोमवार को आए 7.8 तीव्रता के भूकंप ने तुर्किये की जमीन को 10 फीट यानी करीब 3 मीटर खिसका दिया है। ये दावा इटली के भूकंप विज्ञानी डॉ. कार्लो डोग्लियानी ने किया है। इससे पहले 2011 में जापान और 2022 में भारत के भी खिसकने की रिपोर्ट्स सामने आई थीं।

भास्कर एक्सप्लेनर में जानेंगे कि भूकंप की वजह से 10 फीट कैसे खिसक गया तुर्किये, जमीन खिसकने की क्या कीमत चुकानी पड़ती है और किन देशों की जमीन खिसकने का ज्यादा खतरा है

भूकंप की वजह से कैसे खिसक गया तुर्किये?

तुर्किये की जमीन खिसकने की वजह समझने के लिए हमें इसकी लोकेशन को समझना होगा।

दरअसल, दुनिया बड़ी-बड़ी टैक्टोनिक प्लेट्स पर स्थित है। इन प्लेट्स के नीचे तरल पदार्थ लावा है। ये प्लेट्स लगातार तैरती रहती हैं और कई बार आपस में टकरा जाती हैं।

तुर्किये की जमीन खिसकने की वजह समझने के लिए हमें इसकी लोकेशन को समझना होगा।

दरअसल, दुनिया बड़ी-बड़ी टैक्टोनिक प्लेट्स पर स्थित है। इन प्लेट्स के नीचे तरल पदार्थ लावा है। ये प्लेट्स लगातार तैरती रहती हैं और कई बार आपस में टकरा जाती हैं।

तुर्किये का ज्यादातर हिस्सा एनाटोलियन टैक्टोनिक प्लेट पर बसा है। ये प्लेट यूरोशियन, अफ्रीकन और अरबियन प्लेट के बीच में फंसी हुई है। जब अफ्रीकन और अरबियन प्लेट शिफ्ट होती हैं तो तुर्कीये सैंडविच की तरह फंस जाता है। इससे धरती के अंदर से ऊर्जा निकलती है और भूकंप आते हैं। सोमवार को तुर्किये में आया भूकंप नॉर्थ एनाटोलियन फॉल्ट लाइन पर आया।

इटली के सीस्मोलॉजिस्ट डॉ. कार्लो डोग्लियोनी के मुताबिक एनाटोलियन टैक्टोनिक प्लेट्स और अरबियन प्लेट्स एक दूसरे से 225 किलोमीटर दूर खिसक गई हैं। इसके चलते तुर्किये अपनी भौगोलिक जगह से 10 फीट खिसक गया है।

डोग्लियोनी बताते हैं कि टैक्टोनिक प्लेट्स में हुए इस बदलाव के चलते तुर्किये, सीरिया की तुलना में 5 से 6 मीटर यानी लगभग 20 फीट और अंदर धंस गया है। हालांकि उन्होंने साफ किया कि ये शुरुआती डेटा से मिली जानकारी है। आने वाले दिनों में सैटेलाइट इमेज से सटीक जानकारी मिल सकेगी।

डरहम यूनिवर्सिटी में स्ट्रक्चरल जियोलॉजी के प्रोफेसर डॉ. बॉब होल्ड्सवर्थ ने कहा कि इतना शक्तिशाली भूकंप आने के बाद प्लेट का शिफ्ट होना स्वाभाविक है। उन्होंने बताया कि भूकंप की तीव्रता और टैक्टोनिक प्लेट्स के खिसकने के बीच सीधा संबंध है। इसमें ऐसा कुछ नहीं है जो अटपटा लगे।

उन्होंने बताया कि 6.5 से 6.9 की तीव्रता वाले भूकंप आने पर टैक्टोनिक प्लेट्स एक मीटर तक खिसक सकती है। वहीं अब तक के ज्ञात सबसे बड़े भूकंप आने पर यह 10 से 15 मीटर तक खिसक सकती हैं।

तुर्किये के 10 फीट तक खिसकने की कीमत

प्रो. होल्ड्सवर्थ के मुताबिक इतनी ज्यादा तीव्रता वाले भूकंप से अगर तुर्किये के आसपास की टैक्टोनिक प्लेट्स में 3 से 6 मीटर का हॉरिजॉन्टल खिसकाव होता है तो यह स्वाभाविक है। वजह हैं तुर्किये का तीव्र भूकंप वाले जोन में होना।

टैक्टोनिक प्लेट्स का इस तरह हॉरिजॉन्टल खिसकाव सड़कों, इमारतों, बोरिंग, पानी या पेट्रोल की पाइप लाइन को तोड़ सकता है। साथ ही नदियों की दिशा भी बदल सकता है।

यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में अर्थक्वेक जियोलॉजी और डिजास्टर रिस्क रिडक्शन के प्रोफेसर डॉ. जोआना फरे वॉकर ने कहा कि ये दोनों स्ट्राइक-स्लिप भूकंप थे। उन्होंने कहा कि स्ट्राइक-स्लिप फॉल्ट्स की वजह से 7 या 8 का तीव्रता का भूकंप आने की आशंका होती है। जैसा कि तुर्किये में देखने को मिला है।

2011 में जापान में आए भूकंप से धरती खिसक गई थी

11 मार्च 2011 को जापान में 9.1 तीव्रता का अब तक का सबसे शक्तिशाली भूकंप आया था। इस शक्तिशाली भूकंप ने न सिर्फ लोगों की जान ली, बल्कि धरती की धुरी को 4 से 10 इंच तक खिसका दिया था। साथ ही पृथ्वी की रोजाना चक्कर लगाने की रफ्तार में भी वृद्धि हुई।

उस वक्त USGS के सीस्मोलॉजिस्ट पाल अर्ले ने कहा था कि इस भूकंप ने जापान के सबसे बड़े द्वीप होन्शू को अपनी जगह से करीब 8 फीट पूर्व की तरफ खिसका दिया है। इस दौरान पहले 24 घंटे में 160 से ज्यादा भूकंप के झटके आए थे। इनमें से 141 की तीव्रता 5 या इससे ज्यादा थी। जापान में आए इस भूकंप और सुनामी ने 15 हजार से ज्यादा लोगों की जान ली थी।

जापान भूकंप के सबसे ज्यादा संवेदनशील क्षेत्र में है। यह पेसिफिक रिंग ऑफ फायर क्षेत्र में आता है। रिंग ऑफ फायर ऐसा इलाका है जहां कई कॉन्टिनेंटल के साथ ही ओशियनिक टैक्टोनिक प्लेट्स भी हैं। ये प्लेट्स आपस में टकराती हैं तो भूकंप आता है, सुनामी उठती है और ज्वालामुखी फटते हैं।

इस रिंग ऑफ फायर का असर न्यूजीलैंड से लेकर जापान, अलास्का और उत्तर व साउथ अमेरिका तक देखा जा सकता है। दुनिया के 90% भूकंप इसी रिंग ऑफ फायर क्षेत्र में आते हैं। यह क्षेत्र 40 हजार किलोमीटर में फैला है। दुनिया में जितने सक्रिय ज्वालामुखी हैं, उनमें से 75% इसी क्षेत्र में हैं। 15 देश इस रिंग ऑफ फायर की जद में हैं।

भारत भी यूरोप की तरफ खिसक रहा है

साल 2022 में ऑस्ट्रेलिया के भूवैज्ञानिकों ने धरती पर मौजूद सभी टैक्टोनिक प्लेटों का एक नया नक्शा तैयार किया था। इसमें बताया गया था कि इंडियन प्लेट और ऑस्ट्रेलियन प्लेट के बीच माइक्रोप्लेट को नक्शे में शामिल किया गया है। साथ ही कहा गया था कि भारत यूरोप की तरफ खिसक रहा है।

भारत भी यूरोप की तरफ खिसक रहा है

साल 2022 में ऑस्ट्रेलिया के भूवैज्ञानिकों ने धरती पर मौजूद सभी टैक्टोनिक प्लेटों का एक नया नक्शा तैयार किया था। इसमें बताया गया था कि इंडियन प्लेट और ऑस्ट्रेलियन प्लेट के बीच माइक्रोप्लेट को नक्शे में शामिल किया गया है। साथ ही कहा गया था कि भारत यूरोप की तरफ खिसक रहा है।

इससे अंदेशा जताया जा रहा है कि आने वाले दिनों में इन दो प्लेटों के टकराव से हिमालय सहित उत्तरी हिस्सों में भीषण भूकंप आ सकता है। ऑस्ट्रेलिया के यूनिवर्सिटी ऑफ एडिलेड में डिपार्टमेंट ऑफ अर्थ साइंसेस के लेक्चरर डॉ. डेरिक हैस्टरॉक और उनके साथियों ने मिलकर ये नक्शा तैयार किया है।

डॉ. डेरिक ने कहा है कि हमारा नक्शा पिछले 20 लाख सालों में धरती पर आए 90 फीसदी भूकंपों और 80% ज्वालामुखी विस्फोटों की पूरी कहानी बताता है। वहीं वर्तमान मॉडल सिर्फ 65% भूकंपों की जानकारी देता है। इस नक्शे की मदद से लोग प्राकृतिक आपदाओं की गणना कर सकते हैं।

2004 में आए भूकंप और सुनामी से अंडमान का इंदिरा पॉइंट जलमग्न हो गया था

26 दिसंबर 2004 को इंडोनेशिया में आए भूकंप और फिर सुनामी के चलते अंडमान-निकोबार द्वीप समूह का इंदिरा पॉइंट जलमग्न हो गया था। यह द्वीप सुमात्रा से 138 किमी की दूरी पर स्थित है।

यहां पर एक ही लाइट हाउस है जिसका उद्घाटन 30 अप्रैल 1972 को हुआ था। यह भारत के एकदम दक्षिण में स्थित है और इसे भारत का आखिरी बिंदु भी कहा जाता है।

इसका नाम भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नाम पर रखा गया है। इंदिरा पॉइंट का लाइट हाउस भारत होते हुए मलेशिया और मलक्का जाते हुए जहाजों को रोशनी देने का काम करता है।

204 साल पहले भूकंप की वजह से भुज में बना था टापू

भारत में 204 साल पहले यानी साल 1819 में गुजरात के भुज में भूकंप से टापू बन गया था। इसे अल्लाह बंद नाम से जाना जाता है। वैज्ञानिकों की मानें तो रिक्टर पैमाने पर 7.8 से अधिक तीव्रता के भूकंप आने पर ऐसा होना संभव है।

इसकी वजह जमीन के भीतर प्लेटों के बीच दरार को माना जा सकता है। एक्सपर्ट का कहना है कि यह प्लेटें लगातार मूवमेंट करती हैं। कई बार इनके बीच दरार होती है।

ऐसे में समुद्र के भीतर अगर 7.5 से ज्यादा तीव्रता और अधिक गहराई का भूकंप आता है तो यह प्लेटें कई मर्तबा एक-दूसरे के ऊपर चढ़ जाती हैं। अगर प्लेटें 6-7 मीटर की भी ऊंचाई ले लेती हैं तो वह टापू जैसी स्थिति हो जाती है।

अप्रैल 2015 में आए नेपाल के विनाशकारी भूकंप ने सैकड़ों जानें ही नहीं लीं, बल्कि उसने हिमालयी देश के भूगोल को भी बिगाड़ दिया था।

यूनिवर्सिटी ऑफ कैंब्रिज के टैक्टोनिक एक्सपर्ट जेम्स जैक्सन ने बताया कि भूकंप के बाद काठमांडू के नीचे की जमीन तीन मीटर यानी करीब 10 फीट दक्षिण की ओर खिसक गई।

हालांकि दुनिया की सबसे बड़ी पर्वत चोटी एवरेस्ट के भूगोल में किसी बदलाव के संकेत नहीं हैं। नेपाल में आया यह भूकंप 20 बड़े परमाणु बमों जितना शक्तिशाली था।

भारत का एक हिस्सा 10 फीट तक नेपाल में खिसका

एडिलेड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक सैंडी स्टेसी ने दावा किया था कि हिमालय की वजह से दबाव के चलते उत्तर की ओर बढ़ रहीं भारतीय टैक्टोनिक प्लेट्स जिन्हें यूरेशियन प्लेट कहा जाता है वह उत्तरपूर्व की तरफ 10 डिग्री नीचे चली गई हैं। इस वजह से भूकंप के वक्त कुछ ही समय में भारत का एक हिस्सा करीब एक से दस फीट तक नेपाल के नीचे ख‍िसक गया है। इस पूरी भौगोलिक प्रक्रिया में हिमालय का करीब एक से दो हजार वर्ग मील क्षेत्रफल ख‍िसका है।

अमेरिका की कोलंबिया यूनिवर्सिटी के लेमोंट-डोहर्टी अर्थ ऑब्जर्वेट्री के एसोसिएट रिसर्च प्रोफेसर कोलिन स्टार्क के मुताबिक नेपाल की सीमा से लगे बिहार में धरती की सतह की ऊपरी चïट्टान (जोकि चूना पत्थर की चïट्टानें हैं) चंद सेकेंड में उत्तर दिशा की ओर खिसक कर नेपाल के नीचे समा गई।

भारतीय प्लेट में हुए इस घर्षण से नेपाल के भरतपुर से लेकर हितौदा होते हुए जनकपुर जोन पर इसका असर हुआ है। इसी इलाके से लगी भारतीय जमीन (पूर्वी-पश्चिमी चंपारण) नेपाल की सतह के नीचे चली गई है।

यह बात स्पष्ट हो चुकी है कि पूरा भारतीय उपमहाद्वीप बहुत ही मंद गति से नेपाल और तिब्बत की फाल्ट (दरार) के नीचे जा रहा है। भारतीय उप महाद्वीप के नेपाल और तिब्बत की सतह के नीचे जाने की रफ्तार हर साल 1.8 इंच होती है।

2013 में भूकंप से ग्वादर के समुद्र में 300 फीट लंबा टापू बन गया था

25 सितंबर 2013 को पाकिस्तान के बलूचिस्तान में आए 7.8 की तीव्रता वाले भूकंप से तटीय शहर ग्वादर में समुद्र में एक टापू बन गया था।

अंडे के आकार का यह टापू 250 से 300 फीट लंबा और पानी की सतह से करीब 60-70 फीट ऊपर था।

इसकी सतह खुरदुरी है और अधिकतर क्षेत्र में कीचड़ था। कुछ क्षेत्रों में रेत भी थी। इसके एक क्षेत्र में ठोस चट्टान भी थी।

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