
PM नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को दाऊदी बोहरा समुदाय के सैफ एकेडमी के एक कैंपस का उद्घाटन किया। इस दौरान उन्होंने कहा कि मुझे बार-बार प्रधानमंत्री मत कहिए। मैं आपके परिवार का सदस्य हूं। PM मोदी ने कहा कि वो 4 पीढ़ियों से बोहरा समुदाय से जुड़े हैं।
इससे पहले 2018 में मोदी प्रधानमंत्री के तौर पर इंदौर में बोहरा समुदाय के कार्यक्रम में शामिल हुए थे। उससे भी पहले 2005 की एक तस्वीर मौजूद है, जिसमें चेन्नई में बोहरा समुदाय के लोग नरेंद्र मोदी का जन्मदिन मना रहे हैं।
PM नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को दाऊदी बोहरा समुदाय के सैफ एकेडमी के एक कैंपस का उद्घाटन किया। इस दौरान उन्होंने कहा कि मुझे बार-बार प्रधानमंत्री मत कहिए। मैं आपके परिवार का सदस्य हूं। PM मोदी ने कहा कि वो 4 पीढ़ियों से बोहरा समुदाय से जुड़े हैं।
इससे पहले 2018 में मोदी प्रधानमंत्री के तौर पर इंदौर में बोहरा समुदाय के कार्यक्रम में शामिल हुए थे। उससे भी पहले 2005 की एक तस्वीर मौजूद है, जिसमें चेन्नई में बोहरा समुदाय के लोग नरेंद्र मोदी का जन्मदिन मना रहे हैं।
सुलेमानी बोहरा का दफ्तर यमन में है, जबकि दाऊदी का मुख्यालय मुंबई है। भारत में दाऊदी बोहरा की आबादी 5 लाख और सुलेमानी बोहरा की आबादी 3 लाख है। वहीं पूरी दुनिया में दाऊदी बोहरा करीब 10 लाख और सुलेमानी बोहरा करीब 5 लाख हैं। भारत के अलावा इस समुदाय के लोग पाकिस्तान, यमन और पूर्वी अफ्रीका में रहते हैं।
बोहराओं में आध्यात्मिक गुरु ही सर्वोच्च ताकत
सैयदना के पद पर बैठे शख्स को समुदाय के लोग सुपर अथॉरिटी यानी सर्वोच्च सत्ता मानते हैं। समुदाय के धर्मगुरु के पास किसी भी सदस्य को अपने समुदाय से निकालने का पूरा अधिकार होता है। समुदाय से बाहर निकलने के बाद शख्स को न बोहराओं की मस्जिद में प्रवेश मिलता है और न ही उनके कब्रगाह में दफनाने की जगह। शादी विवाह में भी बोहरा समुदाय से कोई शामिल नहीं होता।

समुदाय का मानना है कि आध्यात्मिक गुरुओं के फैसले में कोई भीतरी या बाहरी शक्ति दखल नहीं दे सकती है। इसके आदेश या निर्देश को कहीं चुनौती भी नहीं दी जा सकती है। सरकार और अदालत में भी नहीं।
इस पद पर बैठे शख्स को सैयदना भी कहते हैं। इसका अपने समुदाय में गुरु से ज्यादा शासक की तरह रुतबा होता है। वह मुंबई में अपने विशाल आवास सैफी महल में राजाओं और नवाबों की तरह रहते हैं।
पैसे कैसे कमाते हैं…
सैयदना देश और विदेश में अपने दूत नियुक्त करते हैं। इसे आमिल कहते हैं। आमिल ही धर्मगुरु के फरमान को लोगों तक पहुंचाते हैं और उनसे पैसे वसूलते हैं।
बोहरा धर्मगुरु सैय्यदना की बनाई हुई व्यवस्था के मुताबिक बोहरा समुदाय में हर सामाजिक, धार्मिक, पारिवारिक और व्यवसायिक कार्य के लिए सैयदना की रजा (अनुमति) अनिवार्य होती है। ये अनुमति हासिल करने के लिए समुदाय के लोगों को तय किया गया शुल्क चुकाना होता है।
शादी-ब्याह, बच्चे का नामकरण, विदेश यात्रा, हज, नए कारोबार, अंतिम संस्कार आदि सभी कुछ सैयदना की अनुमति से और निर्धारित पैसे देने के बाद ही संभव होता है।
यही नहीं, सैयदना के दीदार करने और उनका हाथ अपने सिर पर रखवाने और उनके हाथ चूमने (बोसा लेने) के लिए भी पैसा देना होता है।
इसके अलावा समाज के प्रत्येक व्यक्ति को अपनी वार्षिक आमदनी का एक निश्चित हिस्सा दान के रूप में देना होता है।
तीन चर्चित मामलों की वजह से विवादों में बोहरा समुदाय…
1. चाचा के दावे को मानने से इनकार कर सैफुद्दीन बने धर्मगुरु
बोहरा समुदाय के सबसे बड़े धर्मगुरु के पद पर बैठे सैयदना सैफुद्दीन के खिलाफ उनके ही परिवार के सदस्य बॉम्बे हाईकोर्ट चले गए। दरअसल, मोहम्मद बुरहानुद्दीन बोहरा समुदाय के 52वें सैयदना थे। 2012 में अचानक बीमार होने की वजह से उनकी मौत हो गई। ऐसे में वह अपना उत्तराधिकारी नहीं नियुक्त कर पाए।
उन्होंने अपने छोटे भाई खुजेमा कुतुबुद्दीन को अपना माजूम बहुत पहले ही नियुक्त कर दिया था। ऐसे में बुरहानुद्दीन की मौत के बाद उनके भाई ने इस पद पर दावा ठोका। ऐसी स्थिति में धर्मगुरु के माजूम को ही अगला सैयदना मान लिया जाता है।
हालांकि, इस मामले में ऐसा नहीं हुआ। 52वें सैयदना बुरहानुद्दीन की मौत के बाद उनके बेटे मुफद्दल सैफुद्दीन ने अपने चाचा के दावे को नजरअंदाज कर पिता की जगह पर खुद को 53वां सैयदना घोषित कर दिया। इसके बाद ही ये मामला बॉम्बे हाईकोर्ट पहुंचा था।
2. महिला खतना का मामला कोर्ट में पहुंचा
2018 में दाऊदी बोहरा समुदाय में महिला खतना प्रथा के खिलाफ मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। धर्म के नाम पर लंबे समय से चली आ रही इस परंपरा को अमानवीय बताते हुए सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। सुप्रीम कोर्ट ने तो इस मामले में कोर्ट में दायर जवाब में कहा कि सरकार इस तरह की परंपरा के पक्ष में नहीं है।
ऑस्ट्रेलिया में तो इस सिलसिले में जोर जबर्दस्ती करने के आरोप में वहां के आमिल सैयदना के प्रतिनिधि को जेल भी भेजा जा चुका है। इसी तरह अमेरिका में भी बच्चियों का खतना करने वाले एक डॉक्टर को जेल जाना पड़ा है।
3. बराअत की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ करेगी
बोहरा समुदाय बराअत की वजह से भी चर्चा में रहा है। इसकी वजह यह है कि सैयदना के फैसले का उल्लंघन करने वालों को बराअत यानी सामाजिक बहिष्कार का फरमान सुनाया जाता है। अगर किसी शख्स के खिलाफ बराअत का आदेश सैयदना जारी करते हैं तो इसके बाद उस शख्स से कोई भी किसी स्तर पर संबंध नहीं बना सकता है।
बराअत का फरमान झेल रहा शख्स परिवार और समाज के किसी कार्यक्रम में हिस्सा नहीं ले सकता है। उसे समुदाय की मस्जिद में भी एंट्री नहीं दी जाती है। मरने के बाद उसे कब्रिस्तान में भी दफनाने की इजाजत भी नहीं मिलती है।
2018 में बोहरा समुदाय की मस्जिद में पहुंचे थे नरेंद्र मोदी
महाराष्ट्र BJP प्रवक्ता माधव भंडारी के मुताबिक दाऊदी का BJP और नरेंद्र मोदी से पुराना रिश्ता रहा है। 2012 में जब बोहरा की एक विश्वस्तरीय बैठक हुई थी तो उसमें भाजपा के कई नेता शामिल हुए थे।
उन्होंने कहा कि अचार संहिता लागू होने की वजह से नरेंद्र मोदी उस साल वहां नहीं पहुंचे थे। हालांकि, 14 सितंबर 2018 को इंदौर स्थित बोहरा समुदाय की एक मस्जिद में मोदी पहुंचे थे। उनका कहना है कि नगर निगम चुनाव से इसका कोई लेना-देना नहीं है। इसकी वजह यह है कि 8 महीने पहले ही ये कार्यक्रम तय हुआ था।
क्या मुंबई नगर निगम चुनाव से बोहरा का कोई संबंध है?
कुल मुस्लिमों में 10% बोहरा आबादी है। इसके अलावा महाराष्ट्र के 50 वार्ड में बोहरा आबादी ज्यादा है। ऐसे में मुंबई नगर निगम चुनाव से पहले इस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री के शामिल होने को चुनाव से जोड़कर भी देखा जा रहा है।
2011 की जनगणना के मुताबिक मुंबई में मुसलमानों की आबादी 20.65% है। नगर निगम चुनाव में अब तक मुस्लिमों का वोट कांग्रेस को मिलता रहा है। शिवसेना की छवि कट्टर हिंदुत्व की रही है, ऐसे में माना जा रहा है कि कांग्रेस से बोहरा वोट बैंक को तोड़कर अपने तरफ लाने की कोशिश कर रही है।