Saturday, December 14, 2024

रेलवे भूमि स्थलों को RLDA विकसित करने के मकसद में असफल रहा

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लोकसभा की लोक लेखा समिति ने अपनी एक रिपोर्ट को लेकर यह दावा किया है कि रेलवे भूमि विकास प्राधिकरण (RLDA) विभिन्न कारणों से वाणिज्यिक उपयोग के लिए रेलवे भूमि स्थलों को विकसित करने के अपने मकसद में असफल रहा।

समिति ने अपनी एक रिपोर्ट में दावा किया है कि उसने साल 2007 में भारतीय रेलवे द्वारा RLDA को सौंपे गए 49 में से 17 स्थलों की समीक्षा की। जिससे पता चला है कि इनमें से किसी को भी 2017 तक विकसित नहीं किया गया था। इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 49 साइटों में से केवल 40 व्यावसायिक रूप से व्यावहारिक थे ।

 

अधीर रंजन चौधरी की अध्यक्षता वाली समिति ने ‘रेल भूमि विकास प्राधिकरण द्वारा वाणिज्यिक इस्तेमाल के लिए रेलवे भूमि का विकास’ विषय का चयन किया गया था, जो 20 जुलाई, 2018 को लोकसभा में रखी गई नियंत्रक महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट पर आधारित था। समिति ने कैग की रिपोर्ट की मदद और स्थानों की समीक्षा कर खुलासा किया कि भारतीय रेलवे के पास कई हजारों हेक्टेयर खाली जगह है।

रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीय रेलवे के पास 43,000 हेक्टेयर खाली जगह है। जिसमें से उसने राजस्व उत्पन्न करने के लिए वाणिज्यिक विकास के लिए 2007 से लेकर 2017 तक RLDA को 49 साइटों को सौंपा गया था। ऑडिट ने 17 साइटों के विकास की समीक्षा की, जिन्हें RLDA को 2007 में सौंपा गया था और जिसमें से पता चला की किसी भी जगह का विकास नहीं किया गया था।

समिति ने कहा की लेखापरीक्षा के निष्कर्षों से पता चला है कि परामर्शदाताओं की नियुक्ति करने, परामर्शदाताओं द्वारा रिपोर्ट प्रस्तुत करने, भूमि उपयोग योजना में परिवर्तन के लिए राज्य सरकारों से अनुमति लेने, भारग्रस्त भूमि मुहैया कराकर संबंधित क्षेत्रीय रेलों द्वारा रेल भूमि सौंपने, अधूरे कागजों वाली गलत जगहों की पहचान करने आदि में कमियां थीं, जिसके फलस्वरूप 166996 एकड़ की इन जगहों का विकास नहीं हो पाया था।

इस रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया कि आरएलडीए ने 2006-07 से 2016-17 तक स्थापना, परामर्श शुल्क, विज्ञापन आदि के लिए 102.29 करोड़ रुपये भी खर्च किए। इसने रेलवे स्टेशनों पर मल्टी-फंक्शनल कॉम्प्लेक्स (एमएफसी) के विकास से केवल 67.97 करोड़ रुपये कमाए, जो सौंपे गए भूमि के वाणिज्यिक विकास से कमाई का हिस्सा नहीं था।

समिति ने अपनी रिपोर्ट में ये भी दावा किया कि इन 17 स्थानों के विकास की स्थिति का अवलोकन करने पर पता चला की केवल तीन जगहों को विकास के लिए सौंपा गया था, साथ ही कार्य रद्द कर दिया गया था और शेष सात स्थानों को सौंपने में विभिन्न कारणों की वजह से देरी हुई थी जैसे कि मामला न्यायालयों में लंबित था, परामर्शदाताओं द्वारा मूल्यांकन किया जा रहा था।

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