जैसा की आप सभी जानते है की मार्च का महीना आने वाला है साथ ही स्कूलों में बच्चों की परीक्षाओ की शुरुआत होने वाली है लेकिन परीक्षाओ के साथ बच्चो में तनाव देखने को भी मिलता है कोई अपनी तैयारी को लेकर परेशान दिखता है, कोई नंबर्स की चिंता में डूब जाता है तो किसी को परिवार के दबाव में पड़ोसी के बच्चों से ज्यादा नंबर लाने होते हैं. कारण कुछ भी हो, तनाव इन सभी परिस्थितियों में होता है।
गुड़गांव स्थित ऑर्टेमिस हॉस्पिटल में मनोचिकित्सा विभाग के प्रमुख डॉ राहुल चंडोक एग्जाम स्ट्रेस को समझाते हुए कहते हैं, “जीवन में जब भी कोई व्यक्ति कोई एक्टिविटी करता है तो उसके लिए मेहनत करनी पड़ती है और जब मेहनत करते हैं तो प्रेशर लगता है जिसे फिजिक्स में स्ट्रेस कहा जाता है. यही मेहनत अगर एग्जाम के लिए की जाए तो इसे एग्जाम स्ट्रेस कहते हैं, लेकिन होता ये है कि जब आपने तैयारी शुरू से नहीं की है, या कोई ऐसा लक्ष्य चुन लिया है जो आपकी क्षमता से परे है तो सिर्फ प्रेशर रह जाता है।
परीक्षा से पहले क्या करे ? परीक्षा से पहले का तनाव खासकर उन छात्रों में देखने को मिलता है जिन्होंने पूरे साल ध्यान से पढ़ाई न की हो और अंत के कुछ दिनों में जोर लगा रहे हों. डॉ राहुल कहते हैं कि इन छात्रों के पास अंत में सिलेबस ज्यादा होता है और तैयारी के लिए समय कम, इसलिए दबाव महसूस करते हैं. छात्र टूटने की कगार पर खड़े होते हैं. वे आगे कहते हैं कि जिन्होंने पूरे साल पढ़ाई की हो वो बच्चे इस समय में रिवीजन के फेज में होते हैं, इसलिए उनके आत्मविश्वास में वृद्धि होती है।
परीक्षा के दौरान का तनाव औसत और कमजोर दोनों तरह के छात्रों पर हो सकता है. डॉ. राहुल आगे कहते हैं कि ऐसा संभव है कि किसी छात्र ने पूरे साल पढ़ाई की हो, लेकिन जैसे ही एग्जाम पेपर हाथ में आया तो परफॉर्मेंस एंग्जायटी में वो ब्लैंक हो जाए. इस स्थिति में दिल की धड़कन बढ़ने लगती है और पसीना छूटने लगता है. अगर परीक्षा मौखिक है तो छात्र जवाब पता होते हुए भी ऐसी हालत में कुछ बोल नहीं पाता. दूसरी तरफ जिन छात्रों ने पढ़ाई नहीं की या किसी कारण से तैयारी नहीं हो पाई तो उन्हें परीक्षा के दौरान ही बाद के परिणाम सताने लगते हैं।
परीक्षा के बाद का स्ट्रेस समाज और परिवार द्वारा दिया जाने वाला दबाव होता है. ये समस्या खासकर नंबर या रैंक को लेकर तुलना से खड़ी होती है. डॉ. राहुल कहते हैं, “इस दौरान छात्रों के अंदर तुलना की भावना भी आने लगती है. अगर किसी के 100 में से 70 अंक आए हैं तो वो अपने किसी दोस्त के 80 अंक आने से परेशान हो सकता है या गिल्ट में डूब सकता है।
इसका उपाय बताते हुए कहते हैं, “ऐसे में छात्रों को तुलना जरूर करनी चाहिए लेकिन किसी और से नहीं बल्कि अधिकतम अंक से. अगर किसी छात्र के 100 में से 100 अंक आ जाते हैं तो फिर उसे खुद को टॉपर समझना चाहिए, और 10 छात्रों के भी 100 में से 100 अंक आने पर भी उसे खुद को ही टॉपर समझना चाहिए, क्योंकि किसी और के पूरे नंबर आने से उसके प्रदर्शन पर फर्क नहीं पड़ता।