Sunday, December 22, 2024

भारतीयों को क्यों पसंद आने लगा है कोरियाई कल्चर..

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जैसा की सभी जानते है की कोरियाई कल्चर भारतीय युवाओ में बढ़ता हुआ काफी अच्छा मनोरंजन है अब उनके खान-पान से लेकर मनोरंजन की पसंद तक हर जगह कोरिया की झलक साफ-साफ देखने को मिलती है। आइये नज़र डालते है की क्या-क्या प्रभाव पड़ रहा है लोगो की लाइफ में।

गाजियाबाद की आन्या 13 साल की हैं. अपनी छह अन्य सहेलियों के साथ उन्होंने अपनी बीटीएस आर्मी बनाई है. बीटीएस अपने फैन्स को ‘आर्मी’ नाम देता है जिसका फुल फॉर्म ‘अडॉरेबल रिप्रेजेंटेटिव एमसी फॉर यूथ’ है. सात सदस्यों वाले कोरियन बॉय बैंड बीटीएस (बांगतान सोन्योन्दान या बैंगटैन बॉयज) में तीन रैपर—आरएम, शुगा, जे-होप और चार वोकलिस्ट-जिन, जिमिन, वी और जंगकुक हैं.

आन्या अपनी बीटीएस स्क्रैपबुक दिखाते हुए बताती हैं, “उन्होंने हमें संदेश दिया है कि हम फैन्स को एकजुट होकर रहना है.” 12-13 साल की ये लड़कियां करोड़ों अन्य टीनेजर्स की तरह ऐसी संवेदनशील उम्र में हैं जब दुनिया सबसे खूबसूरत के साथ-साथ सबसे अंधकारमय भी हो सकती है. आन्या की सहेली, 13 साल की देवांशी बताती हैं, “जब मैंने उन्हें पहली बार सुना, मैं पढ़ाई में अच्छा नहीं कर रही थी. उन्हें सुनने के बाद मुझे यकीन हुआ कि मैं भी अच्छा कर सकती हूं.

बीटीएस की प्रसिद्धि अप्रासंगिक नहीं. बल्कि एक बड़ी लहर, जिसे एक्सपर्ट ‘हाल्यू’ (कोरियन संस्कृति का बहाव) कहते हैं, का हिस्सा है. इसमें कोरियन सिनेमा, टीवी शो, ओटीटी कॉन्टेंट, खाना, ब्यूटी प्रोडक्ट्स के साथ-साथ अन्य सांस्कृतिक निर्यात शामिल हैं, जिनका लेखा-जोखा रुपयों में नहीं किया जा सकता.

इस निर्यात की शुरुआत भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों में ’90 के दशक के अंत तक हो चुकी थी. इसकी मुख्य वजह थी 1998 में पूर्वोत्तर में आरीरांग ब्रॉडकास्टिंग स्टेशन का चालू होना. उन दिनों म्यांमार चीन से कोरियन कॉन्टेंट निर्यात कर रहा था. यही कॉन्टेंट गैर-कानूनी तरीके से इंडिया में नॉर्थ-ईस्ट की सीमा से अपनी जगह बना रहा था.

उस वक्त पूर्वोत्तर में भारत और हिंदी विरोधी भावनाएं पूरे जोर पर थीं. सितंबर 2000 में मणिपुर में रेवोल्यूशनरी पीपल्स फ्रंट ने मणिपुर को भारत से अलग करने के अपने मोर्चे के तहत एक नोटिस इशू किया. इससे मणिपुर में हिंदी के इस्तेमाल, खासकर बॉलीवुड फिल्मों और हिंदी टीवी शोज के प्रसारण पर संपूर्ण रोक लगा दी गई.

लोगों में मनोरंजन की जरूरत की इस खाई को कोरियन चैनल आरीरांग ने भरा और घर-घर का हिस्सा बन गया. हालांकि दूरदर्शन और अन्य टीवी चैनलों ने कोरियन शोज को क्षेत्रों के हिसाब से हिंदी और तमिल में डब कर दिखाना शुरू कर दिया था. लेकिन नॉर्थ-ईस्ट के लोगों ने इसे आरीरांग चैनल, लोकल केबल वालों और पाइरेटेड सीडी-डीवीडी के जरिए अपनाया.

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