ब्यूरो रिपोर्ट GBN24 न्यूज़
पंचांग के अनुसार प्रत्येक माह में दो चतुर्थी तिथि पड़ती है। कृष्ण पक्ष की चतुर्थी संकष्टी चतुर्थी और शुक्ल पक्ष की चतुर्थी विनायक चतुर्थी कहलाती है। दोनों ही तिथियां भगवान गणेश को समर्पित हैं। इस दिन विघ्नहर्ता गणेश की विधि-विधान से पूजा की जाती है। आषाढ़ माह की शुरुआत हो चुकी है और इस माह के कृष्ण पक्ष की संकष्टी चतुर्थी को कृष्णपिङ्गल संकष्टी चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। कृष्णपिङ्गल संकष्टी चतुर्थी व्रत इस बार 07 जून 2023, बुधवार के दिन रखा जाएगा। इस दिन विधि-विधान से गणेश जी की पूजा करने से जीवन में आ रही समस्याएं दूर हो जाती हैं। चलिए जानते हैं कृष्णपिङ्गल संकष्टी चतुर्थी की पूजा विधि और महत्व के बारे में…
कृष्णपिङ्गल संकष्टी चतुर्थी तिथि और मुहूर्त
पंचांग के अनुसार आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि 06 जून मंगलवार को देर रात 12 बजकर 50 मिनट से प्रारंभ हो रही है। यह तिथि अगले दिन 7 जून बुधवार को रात 09 बजकर 50 मिनट पर खत्म होगी। ऐसे में उदयातिथि के आधार पर कृष्णपिंगल संकष्टी चतुर्थी व्रत 7 जून बुधवार को रखा जाएगा।
कृष्णपिङ्गल संकष्टी चतुर्थी चंद्रोदय समय
इस साल कृष्णपिङ्गल संकष्टी चतुर्थी व्रत के दिन चंद्रोदय का समय प्राप्त नहीं है, क्योंकि इस दिन चंद्रमा रात 10 बजकर 50 मिनट पर उदय होगा। जबकि चतुर्थी तिथि 07 जून को रात 09 बजकर 50 मिनट पर ही समाप्त हो रही है। इसके बाद पंचमी तिथि शुरू हो जाएगी। इसलिए आपको चतुर्थी खत्म होने से पहले पूजा कर लेनी चाहिए।
कृष्णपिङ्गल संकष्टी चतुर्थी पूजा विधि
- कृष्णपिङ्गल संकष्टी चतुर्थी के दिन प्रातः काल उठकर स्नानादि करने के पश्चात पूजा स्थान की साफ-सफाई करें और गंगाजल छिड़कें।
- फिर भगवान गणेश को वस्त्र पहनाएं और मंदिर में दीप प्रज्वलित करें।
- गणेश जी का तिलक करें और पुष्प अर्पित करें।
- इसके बाद भगवान गणेश को 21 दूर्वा की गांठ अर्पित करें।
- गणेश जी को घी के मोतीचूर के लड्डू या मोदक का भोग लगाएं।
- पूजा समाप्त होने के बाद आरती करें और पूजन में हुई भूल-चूक के लिए क्षमा मांगे।
कृष्णपिङ्गल संकष्टी चतुर्थी महत्व
आषाढ़ माह का कृष्णपिङ्गल संकष्टी चतुर्थी का व्रत सभी कार्यों में सिद्धि प्राप्ति के लिए अचूक माना गया है। जो व्यक्ति इस दिन व्रत रखता है उसकी संतान संबंधी समस्याएं दूर होती हैं। साथ ही धन और कर्ज संबंधी समस्याओं का भी समाधान होता है।