Thursday, January 23, 2025

लोकसभा चुनाव से पहले सीएए का दांव, बंगाल में ममता के लिए टेंशन तो बीजेपी कितना फायदा

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न्यूज़ डेस्क : (GBN24)

केंद्र सरकार ने देश में सीएए को लागू करने का फैसला किया है. लोकसभा चुनाव से पहले सरकार का ये फैसला पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी के लिए परेशानी का सबब बन सकता है. दरअसल, इस फैसले से पश्चिम बंगाल में रह रहे मतुआ समुदाय को फायदा मिलेगा और उन्हें नागरिकता मिल जाएगी. ये समुदाय राज्य में किसी भी दल का खेल बनाने और बिगाड़ने का माद्दा रखता है. 2019 के चुनाव में इस समुदाय ने बीजेपी के पक्ष में वोट किया था.

लोकसभा चुनाव की सियासी तपिश के बीच मोदी सरकार ने सोमवार शाम को नागरिकता संशोधन कानून (CAA) को लेकर अधिसूचना जारी कर दी है. इसके साथ ही देशभर में सीएए कानून लागू हो गया है. सीएए के तहत पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत आए गैर-मुस्लिम को नागरिकता मिल सकेगी. 2024 के लोकसभा चुनाव की सियासी पिच पर उतरने से पहले मोदी सरकार ने सीएए को लागू कर अपने ‘हिंदुत्व’ के तरकश में एक और तीर सजा लिया है,

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सोमवार को कहा कि अगर नागरिकता अधिनियम लोगों के समूहों के साथ भेदभाव करता है, तो वह इसका विरोध करेंगी

बीजेपी ने लोकसभा चुनाव से ठीक पहले सीएए का दांव चला है, जिसका सबसे ज्यादा प्रभाव पश्चिम बंगाल और असम की सियासत पर पड़ने वाला है. अधिसूचना का ऐलान होते ही पश्चिम बंगाल में बीजेपी और मतुआ समुदाय ने जश्न मनाया, लेकिन असम में अखिल असम छात्र संघ ने विरोध करते हुए आंदोलन तेज करने का ऐलान कर दिया. पश्चिम बंगाल में बीजेपी के लिए सीएए का मुद्दा सियासी मुफीद साबित हो सकता है तो असम में टेंशन बन सकता है. बंगाल में क्लीन स्वीप का सपना देख रही ममता बनर्जी के लिए चिंता का सबब बन सकता है?

सीएए लागू होने से पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत आए गैर-मुस्लिम शरणार्थियों को नागरिकता मिलेगी, जिसमें सबसे बड़ा फायदा बंगाल में मतुआ समुदाय को मिलेगा. राज्य में मतुआ समुदाय की बड़ी आबादी है. 2019 में बीजेपी में मतुआ समुदाय से वादा किया था कि सीएए से उन्हें नागरिकता दी जाएगी, जिसका लाभ भी उसे मिला था.

मतुआ समुदाय के बारे में कहा जाता है कि बंगाल का सियासी गणित काफी हद तक मतुआ मतों पर टिका रहता है. माना जाता है कि मतुआ वोट जिधर भी खिसका उसका पलड़ा भारी पड़ जाता है. बंगाल में लगभग एक करोड़ अस्सी लाख मतुआ समुदाय के मतदाता हैं, जो किसी भी दल का खेल बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखते हैं. पश्चिम बंगाल के नादिया, उत्तर और दक्षिण 24 परगना जिलों की कम से कम चार लोकसभा सीट में यह समुदाय निर्णायक है. सीएए के मुद्दे पर बीजेपी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में बनगांव और रानाघाट सीट जीती थी.

पश्चिम बंगाल के चार जिले नादिया , उत्तर 24 परगना, दक्षिण 24 परगना और पूर्वी बर्दवान में मतुआ समुदाय का प्रभाव है. इसी तरह पश्चिम बंगाल की कुल 42 लोकसभा सीटों में से 10 अनुसूचित जनजाति की सीटें हैं. इनमें से चार लोकसभा सीटों पर मतुआ संप्रदाय का प्रभाव है.

सीएए के कानून से जिन समुदायों को फायदा होने वाला है उन लोगों ने बंगाल में 2019 के लोकसभा चुनावों में खुलकर बीजेपी का साथ दिया था. यही वजह है कि सीएए कानून की अधिसूचना जारी होने के बाद बीजेपी को बंगाल में सियासी फायदे की उम्मीद लगा रखी है. ममता बनर्जी कह चुकी हैं कि सीएए को लागू नहीं होने देंगे. ममता बनर्जी इस कानून को लागू करने में ढीला-ढाला रवैया अख्तियार करती हैं तो बीजेपी को उन्हें घेरने का मौका मिल जाएगा. बीजेपी को फायदा तो ममता बनर्जी को टेंशन बढ़ाने वाला है.

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