Sunday, December 22, 2024

क्या CAA लागू करना बीजेपी को पड़ेगा महंगा या हासिल होगी चुनाव में जीत ?

- Advertisement -
- Advertisement -
- Advertisement -

नागरिकता संशोधन कानून पर एक बार फिर विवाद शुरू हो गया है. खबर है कि लोकसभा चुनाव की तारीखों के ऐलान से पहले देशभर में सिटिजनशिप अमेंडमेंट एक्ट लागू किया जा सकता है.

भारतीय नागरिकता (संशोधन) अधिनियम पर 5 साल पहले ही संसद में पारित हो चुका है. हालांकि, देशभर में विरोध प्रदर्शन के चलते आज तक लागू नहीं हुआ. ये कानून अब एक बार फिर चर्चा में है.

कारण है मतुआ समुदाय के बीजेपी नेता और केंद्रीय राज्य मंत्री Shantanu Thakur का एक दावा.

बंगाल से बीजेपी सांसद शांतनु ठाकुर ने गारंटी के साथ दावा किया है कि देशभर में सात दिनों के भीतर सीएए लागू कर दिया जाएगा. इससे पहले 27 दिसंबर को बंगाल दौरे पर गए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि सीएए लागू होने से कोई नहीं रोक सकता.

नागरिकता संशोधन कानून क्या है, आखिर चुनाव से पहले ही इसे लागू करने का क्यों हुआ ऐलान, किन-किन राज्यों में इसका असर होगा, मुसलमानों के लिए क्यों है अहम मुद्दा और विरोध इसपर क्या कहते हैं.

पहले समझिए क्या है नागरिकता कानून CAA
नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2019 भारत सरकार द्वारा पारित एक controversial कानून है. यह अधिनियम 31 दिसंबर 2014 तक पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए छह धर्मों के शरणार्थियों हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, ईसाई और पारसी को भारतीय नागरिकता देता है.

यानी कि इस कानून के तहत तीन पड़ोसी मुस्लिम बाहुल्य देशों से आए उन लोगों को भारतीय नागरिकता दी जाएगी जो 2014 तक किसी न किसी प्रताड़ना का शिकार होकर भारत आकर बस गए थे. हालांकि मुसलमानों को इस प्रावधान से बाहर रखा गया है जिस कारण कानून का विरोध हो रहा है.

तीन देशों से आए विस्थापित लोगों को नागरिकता लेने के लिए कोई दस्तावेज देने की जरूरत नहीं होगी. कानून के तहत छह अल्पसंख्यकों को नागरिकता मिलते ही मौलिक अधिकार भी मिल जाएंगे.

भारतीय नागरिकता कानून 1995 में बदलाव करते हुए संशोधित बिल पहली बार साल 2016 में लोकसभा में पेश किया गया था. तब लोकसभा से बिल पास हो गया, लेकिन राज्यसभा में अटक गया था. बाद में इसे संसदीय समिति के पास भेजा दिया गया. 2019 चुनाव में मोदी सरकार फिर सत्ता में आई, तब बिल दोबारा संसद में पेश किया गया था.

दिसंबर 2019 में बिल संसद के दोनों सदनों से पास हो गया था और इसके बाद राष्ट्रपति की मंजूरी भी मिल गई थी. इसी दौरान देशभर में बड़े स्तर पर विरोध प्रदर्शन भी हुए थे. दिल्ली के शाहीन बाग समेत कुछ इलाकों में कई महीनों तक धरना प्रदर्शन चला था. हालांकि फिर कोरोना महामारी की वजह से सब ठंडा हो गया था.

लोकसभा चुनाव में करीब तीन महीने का वक्त बचा है. फरवरी के आखिरी या मार्च के शुरुआत में चुनाव की तारीख का ऐलान हो जाएगा. पहले अमित शाह और अब केंद्रीय मंत्री शांतनु ठाकुर दोनों ने बंगाल की चुनावी सभाओं में ही देशभर में सीएए लागू करने की बात कही है.

पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनाव में बीजेपी के लिए सीएए लागू करने का वादा एक प्रमुख चुनावी मुद्दा था. बीजेपी का मानना है कि सीएए हिंदू राष्ट्रवाद के उनके एजेंडे को आगे बढ़ा सकता है और हिंदू वोटरों को उनकी पार्टी की ओर आकर्षित कर सकता है. खासकर उन राज्यों में जहां पहले से ही बड़ी हिंदू आबादी है.

बीजेपी सीएए को देश की सुरक्षा और राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए एक कदम के रूप में पेश कर रही है. इस तरह बीजेपी खुद को एक मजबूत और निर्णायक नेतृत्व के रूप में पेश करने कोशिश कर रही है. हालांकि विपक्ष का आरोप है कि सीएए मुस्लिम विरोधी है और भारतीय संविधान के समानता के नियम का उल्लंघन करता है.

ऐसे में बीजेपी विपक्ष को CAA के विरोध को मुस्लिम तुष्टीकरण के रूप में पेश कर सकती है, जो उसके हिंदू राष्ट्रवादी एजेंडे को मजबूत कर सकता है.

पश्चिम बंगाल में बांग्लादेश से आए मतुआ समुदाय के हिंदू शरणार्थी काफी लंबे समय से नागरिकता की मांग कर रहे हैं. इनकी आबादी अच्छी खासी है. ये लोग बांग्लादेश से आए हैं. सीएए लागू होने से इनको नागरिकता मिलने का रास्ता साफ हो जाएगा. 2024 चुनाव में बीजेपी मतुआ समुदाय को लुभाकर अपनी सियासी जड़े मजबूत करना चहा रही है.

2019 लोकसभा चुनाव और 2021 बंगाल विधानसभा चुनाव में बीजेपी मतुआ समुदाय पर पकड़ बनाकर ही बड़ी कामयाबी हासिल की थी. 2014 चुनाव में बंगाल में बीजेपी के पास सिर्फ दो लोकसभा सीट थी. 2019 चुनाव में बढ़कर 18 सीटें हो गईं और 2021 विधानसभा चुनाव में बीजेपी दूसरे नंबर की पार्टी बनकर उभरी थी.

बीजेपी की इस बढ़त के पीछे मतुआ समुदाय की अहम भूमिका रही थी. अब 2024 लोकसभा चुनाव से ठीक पहले बीजेपी ने एक बार फिर सीएए का दांव चल दिया है. ये दांव बीजेपी के लिए बंगाल में संजीवनी साबित हो सकता है. ध्यान देने वाली बात ये भी है कि लोकसभा सीटों के लिहाज से यूपी (80) और महाराष्ट्र (48) के बाद बंगाल (42) तीसरा सबसे बड़ा राज्य है.

नागरिकता संशोधन कानून पूरे भारत में लागू होगा, लेकिन इसका प्रभाव उन राज्यों में ज्यादा दिखाई देगा जहां पहले से ही विदेशी नागरिकों की बड़ी संख्या है. इनमें ज्यादा पूर्वोत्तर के राज्य हैं. जैसे- पश्चिम बंगाल, अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नगालैंड और त्रिपुरा.

नॉर्थ-ईस्ट अल्पसंख्यक बंगाली हिंदुओं का गढ़ माना जाता है. पिछले दशकों में पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान में अत्याचार से परेशान होकर बड़ी संख्या में लोग भागकर भारत आने लगे. पूर्वोत्तर राज्यों की सीमा बांग्लादेश से लगी हुई है इसलिए ज्यादातर लोग इन्हीं राज्यों में बस गए.

एक रिपोर्ट के अनुसार, असम में 20 लाख से ज्यादा हिंदू बांग्लादेशी अवैध रूप से रह रहे हैं. ऐसे ही कुछ हालात दूसरे राज्यों के हैं. इन राज्यों में रहने वाले मूल निवासियों को डर है कि सीएए लागू होने से अल्पसंख्यकों का दबदबा बढ़ जाएगा. नागरिकता मिलने पर उन्हें सरकारी नौकरियों में भी अधिकार मिलेगा. धीरे-धीरे दूसरे देश से आए अल्पसंख्यक उनके संसाधनों पर भी कब्जा कर लेंगे.

आपका वोट

How Is My Site?

View Results

Loading ... Loading ...
यह भी पढ़े
Advertisements
Live TV
क्रिकेट लाइव
अन्य खबरे
Verified by MonsterInsights