न्यूज़ डेस्क : (GBN24)
प्रीत
gaming disorder: देश भर में गेमिंग का बढ़ता नशा बच्चों और युवाओं को बरबाद कर रहा है। विश्व स्तर पर बात करें तो WHO ने इंटरनैशनल स्टैटिस्टिकल क्लासिफिकेशन औफ डिजीज एंड रिलेटेड हैल्थ प्रौब्लम्स के 11वें संशोधन में वर्ल्ड हैल्थ असैंबली मई 2019 में गेमिंग डिसऔर्डर को अपनी लिस्ट में शामिल कर लिया था।
गेमिंग डिसऑर्डर
घर की समस्या, रिलेशन की समस्या, दोस्तों की समस्या, पढ़ने लिखने की समस्या, भांतिभांति की समस्याओं का सागर यहां वहां हर समय और हर जगह बहता हुआ नजर आ जाएगा। ऐसे में लोग कितना समय डिजिटल या वीडियो गेम खेलने लगते है ऐसे में वे धीरे धीरे गेम खेलने को अपने रोजमर्रा के और जरूरी कामों से भी ज्यादा महत्व देने लगते है।
ज्यादा गेम खेलने की वजह से उनके व्यवहार पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ने लगता है। और वे गेमिंग डिसऑर्डर के शिकार हो जाते है ये बिल्कुल वैसे ही है जैसे लोगों को फूड डिसऑर्डर, शॉपिंग डिसऑर्डर, सेक्स डिसऑर्डर या वर्क डिसऑर्डर की समस्या हो जाती है। रिपोर्ट के मुताबिक भारत में ऑनलाइन गेमिंग इंडस्ट्री, मीडिया और इंटरटेनमेंट सेक्टर में सबसे तेजी से ज्यादा है।
WHO ने क्यों किया क्लासीफाई?
WHO के विशेषज्ञों की टीम ने इस संबंध में की गई ढेरों रिसर्च को रिव्यू किया गेमिंग डिसऑर्डर और Internet Gaming Disorder में काफी समानताएं हैं। इंटरनेट गेमिंग डिसऑर्डर यानी कि इंटरनेट पर गेम खेलने से होने वाले डिसऑर्डर को अमेरिकन साइकेट्रिक एसोसिएशन American Psychiatric Association ने सबसे पहले बीमारी के तौर पर क्लासीफाइड किया था। गेमिंग डिसऑर्डर के शिकार व्यक्ति के लक्षण कम से कम 12 महीने में दिखने लगते है।
WHO के अनुसार गेमिंग डिसऑर्डर लक्षण
गेम खेलने की आदत पर कंट्रोल न रख पाना तथा अन्य शौक और कामों से ज्यादा प्राथमिकता गेमिंग को देना, नकारात्मक प्रभावों के बावजूद गेम खेलने का मोह न छोड़ पाना, एंग्जाइटी, डिप्रेशन और स्ट्रेस आदि। वहीं एक अन्य रिसर्च के अनुसार, वीडियो गेम एडिक्शन के शिकार लोगों में कमजोरी, भावुकता, शारीरिक, मानसिक और सामाजिक स्तर पर कमजोरी और अकेलापन की शिकायत भी पाई गई है। एक ही जगह पर घंटो बैठे रहने से मोटापा वजन बढ़ना अनिद्रा/इंसोम्निया आदि अनिद्रा/इंसोम्निया समस्याएं हो सकती हैं।
गेमिंग डिसऑर्डर का उपचार (Treatment)
गेमिंग डिसऑर्डर बिल्कुल नया क्लासिफिकेशन है। इसलिए अभी तक इसके ट्रीटमेंट की सटीक दवाई या थेरेपी नहीं मिल सका। हलाकि रिसर्चर्स चल रही है। इसके अलावा, गेमिंग डिसऑर्डर से पीड़ित किस व्यक्ति को माना जाए और उसकी जांच के तरीकों पर भी अभी व्यापक मतभेद हैं। इसके अलावा इस विषय पर अभी बेहद विस्तृत जांच रिपोर्ट आने की जरुरत है।
कुछ एक्सपर्ट्स अभी तक इंटरनेट गेमिंग डिसऑर्डर स्केल (Internet Gaming Disorder Scale) यानी कि आईजीडीएस (IGDS) का इस्तेमाल ही कंप्यूटर और वीडियो गेम एडिक्शन को मापने के लिए कर रहे हैं। भारत में तो मैंटल हैल्थसे जुड़ी समस्याओं को ज्यादा बड़ा नहीं माना जाता।
जब तक किसी की जान पर नहीं बन आती कोई मर नहीं जाता तब तक उसे समस्या माना ही नहीं जाता है। जब तक भारत में मूलभूल सुविधाओं को लोगों के लिए आम नहीं बना दिया जाता, कम से कम तब तक गेमिंग एडिक्शन को समाज से उखाड़ फेंकना मुश्किल है। लेकिन हार मानने की जरूरत नहीं है। अगर आप किसी ऐसे को जानते हैं जो इस का शिकार है तो उसे साइकोलौजिस्ट के पास ले कर जाएं और उन के मैंटल हैल्थ का इलाज करवाएं।