कश्मीर की फिजाब, बदली : पुलिस की एनकाउंटर लिस्ट में अभी 160 आतंकियों के नाम और, अब न जुलूस,न पत्थरबाजी…

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एनकाउंटर 1: दिन 28 मई, शाम 6:08 बजे। अनंतनाग के सीतीपोरा में बिजबहेरा। 6.13 बजे 2 आतंकी ढेर।

एनकाउंटर 2: दिन 29 मई शाम 5:49 बजे। पुलवामा का गुंडीपोरा इलाका। 30 की सुबह 7.33 बजे पहला, जबकि 10.47 बजे दूसरा आतंकी ढेर। इनमें से एक 13 मई को शहीद हुए कॉन्स्टेबल रियाज अहमद का भी कातिल था।

एनकाउंटर 3: दिन 30 मई शाम 5:34 बजे। अवंतीपोरा का राजपोरा इलाका। 31 की सुबह 5:03 बजे 2 आतंकी ढेर।

‘कल भी एनकाउंटर हुआ था, आज भी होगा…और ये तब तक होता रहेगा जब तक एक भी मिलिटेंट जिंदा है। अमन के दुश्मनों को हम जीने नहीं देंगे। अंडर ग्राउंड या ओवरग्राउंड कैसा भी, अब आतंक का कारोबार कश्मीर में नहीं चलेगा।’

जम्मू-कश्मीर के DGP दिलबाग सिंह ने यह बात दैनिक भास्कर से बातचीत में कही। इसके कुछ घंटे बाद कश्मीर जोन की पुलिस के ट्विटर हैंडल से #Encounter के साथ एक ट्वीट हुआ- अवंतीपोरा के राजपोरा इलाके में एनकाउंटर शुरू हो गया है। 31 मई की सुबह 5.03 बजे ट्विटर पर अपडेट आया- ‘#AwantiporaEncounterUpdate दो आतंकी मारे गए। उनसे दो एके-47 बरामद हुईं।’

बंद नहीं, एनकाउंटर बनी कश्मीर की पहचान

असल में कश्मीर की फिज़ा अब बदल गई है। 3 साल पहले जिस तरह से ‘बंद’ कश्मीर की पहचान थी, ठीक उसी तरह अब ‘एनकाउंटर’ की खबर लोगों के लिए एक आम खबर है। कश्मीर पुलिस जोन के ट्विटर हैंडल में ‘एनकाउंटर’ उसी तरह अपडेट हो रहे हैं जैसे किसी मीडिया संस्थान में बुलेटिन होते हैं। कब, किसे मारा गया, कौन-कौन से हथियार बरामद हुए, आतंकी का नाम, उसका संगठन सब कुछ।

एक पुलिस अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, ‘ट्विटर अपडेट किसी दिखावे में नहीं किया जा रहा। यह हमारी स्ट्रैटेजी का हिस्सा है, दरअसल घाटी से आतंक और खौफ दोनों का सफाया करना है।’

‘गोली से आतंकी का सफाया करते हैं और ट्विटर अपडेट से ‘खौफ’ का। सरकार का मैसेज साफ है, आतंकी की मौत की खबर सबको लगनी चाहिए, केवल हमें नंबर कम नहीं करने हैं, बल्कि उनके कॉन्फिंडेंस को तोड़कर रख देना है। आतंक के आकाओं के मंसूबों को ध्वस्त करना है। उधर, आम जनता को यह बताना है कि घाटी में अब आतंक का नहीं भारत सरकार का शासन है।’

अधिकारी इस पूरी स्ट्रैटेजी को एक लाइन में समेटता है, ‘हम एक तीर से दो निशाने साध रहे हैं। हमारा मकसद साफ है, हम एक तरफ आतंक की फैक्ट्री चलाने वालों के मन में खौफ पैदा करेंगे और आम जनता के बीच से खौफ खत्म।’

 महीने में 90 आतंकी ढेर, इंटेलिजेंस सिस्टम की सफलता
DGP दिलबाग सिंह कहते हैं, ‘अभी तो साल के 5 महीने बीते हैं। 90 आतंकी ढेर हो चुके हैं। 160 की लिस्ट हमारे पास है, पर कल शायद यह आंकड़ा और ज्यादा हो। वे कहते हैं कि पुलिस अपने तरीके से लगातार आतंकियों के ठिकाने तलाश रही है। छिपे आतंकियों को खोज रही है।

हमने पूछा, ‘आपको पता कैसे चलता है कि आतंकी कौन है?’ दिलबाग सिंह हंसते हैं…वे कहते हैं, ‘हमारा अपना पूरा सिस्टम है। खबर का सिस्टम है। आतंकी जहां होता है, हमें खबर मिल जाती है।’ पर ज्यादा विस्तार से वे नहीं बताते।

कश्मीर पुलिस में करीब 20 साल का करियर पूरा कर चुके एक हेड कॉन्सटेबल ने बताया, ‘हमारे खबरी जहां-तहां, अलग-अलग समुदायों के बीच हैं। वह एक रेहड़ी वाला या एक कसाई या कोई होटल वाला भी हो सकता है। मतलब एक आम सिविलियन जैसा दिखता है, बिल्कुल वैसा ही हमारा खबरी भी है। कई खबरी ऐसे भी हैं जो आतंक की दुनिया से अब तौबा करना चाहते हैं, मतलब वे आतंकियों के बीच से होते हैं। हम उन्हें सुरक्षा और पैसा दोनों देते हैं।’

आर्टिकल 370 हटने के पहले और बाद में कैसे हैं हालात

इस सवाल के जवाब में DGP दिलबाग सिंह कहते हैं, ‘आप खुद बताइए। बुरहान वानी की मौत याद है? मीलों लंबा जुलूस और फिर 6 महीने बंद। अब रोज आतंकी मरता है, आप कश्मीर में हैं, कोई बंद नजर आया क्या? 10 लोगों का जुलूस भी दिखा क्या?

अब किसी चौक से कोई बंद की कॉल के लिए खड़े चरमपंथी नहीं दिखाई देते, स्कूल-कॉलेज जाने वाले बच्चों की भीड़ दिखती है। बाजार में छोटे बड़े कारोबारी खुलकर काम कर रहे हैं, क्योंकि अब आतंक की फैक्ट्री बंद की कगार पर है, उनके वर्कर बेरोजगार हैं।’

वो कहते हैं, ‘अब यहां से बंद का ऐलान नहीं होता, न हुर्रियत के गिलानी हैं और न यासीन मलिक हैं। पाकिस्तान की एजेंसियों की दिक्कत यही है। बौखलाहट इतनी कि अब वे पाकिस्तान से बंद का ऐलान करते हैं, लेकिन लोग उनकी सुनते नहीं।’

यह दावा, आंखों देखी हकीकत से बिल्कुल मैच करता है। 25 मई को टेरर फंडिंग मामले में JKLF फाउंडर और पूर्व मुखिया यासीन मलिक को सजा हुई। जहां वह पैदा हुआ, श्रीनगर में यासीन का गढ़, मायसुमा में भीड़ निकली, लेकिन कुछ घंटों के लिए। फिर लोग अपने काम में लग गए। 28 मई को बाजार में बंद तो छोड़िए यासीन की चर्चा तक नहीं थी।

कब पुलिस आ धमकेगी, नहीं पता…बाथरूम, किचन, बेडरूम कहीं भी…
वाकई ताबड़तोड़ ढंग से वहां खोजी अभियान चालू है। आम बहुसंख्यक नागरिक इससे खफा भी हैं और मुश्किल में भी। कुपवाड़ा के आशिफ (बदला हुआ नाम) ने बताया, ‘3 दिन पहले हमारे घर पुलिस आ धमकी। कहां जाते हो, कब जाते हो? कई बार पूछताछ हो चुकी है। पर उन्हें अब तक हम पर भरोसा नहीं हुआ। इस बार जब पुलिस आई तो मेरे बड़े भाई-भाभी के बेडरूम में सीधे धड़धड़ाते हुए पहुंच गई। हमारे लिए ऐसे पल शर्मिंदगी भरे होते हैं।

पर क्या करें, अब तो इसकी आदत पड़ गई है। हम तो अब सोते भी लिहाज के साथ हैं, कब पुलिस हमारी चादर खोल देगी हमें नहीं पता। एक दिन मेरे गांव के कई घरों में बेडरूम से लेकर बाथरूम तक, किचन से लेकर हर कोने तक पुलिस ने तलाशी ली, हालांकि वहां उन्हें कोई आतंकी मिला नहीं।

हम अगर यह कहते भी हैं कि अंदर औरतें हैं, थोड़ा खबर करने दें तो इसकी भी इजाजत हमें नहीं मिलती।’ आशिफ ने यह सब बात करने के बाद हमसे कई बार रिक्वेस्ट की कि अगर मेरी पहचान सामने आई तो मैं भी इनके निशाने पर आ जाऊंगा।

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