यह कार्यक्रम चंद्रमा और अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था स्थापित करने में मदद करेगा। इसकी शुरुआत इंटरप्रेन्योरशिप से हो रही है क्योंकि स्पेसएक्स चांद के सतह पर पहुंचने के इस पहले मिशन का हिस्सा है।
नासा (NASA) का आर्टेमिस-1 (Artemis 1) मिशन करीब आधी सदी के बाद मनुष्यों को चंद्रमा की यात्रा कराकर वापस लाने के एक महत्वपूर्ण कदम की ओर बढ़ रहा है। इस मिशन को 29 अगस्त 2022 को रवाना किया जाना है। स्पेसक्राफ्ट सोमवार को अपने फ्लोरिडा लॉन्चपैड से रवाना होगा। यह अंतरिक्ष यान चंद्रमा तक जाएगा, कुछ छोटे उपग्रहों को कक्षा में छोड़ेगा और खुद कक्षा में स्थापित हो जाएगा। नासा का उद्देश्य अंतरिक्ष यान के परिचालन का प्रशिक्षण प्राप्त करना और चंद्रमा के आसपास अंतरिक्ष यात्रियों द्वारा अनुभव किए जाने वाले हालात की जांच करना है। साथ ही सुनिश्चित करना है कि अंतरिक्षयान और उसमें सवार प्रत्येक अंतरिक्ष यात्री सुरक्षित तरीके से पृथ्वी पर लौट सके।
आर्टेमिस-1 नई अंतरिक्ष प्रक्षेपण प्रणाली की पहली उड़ान होगी। यह ‘हेवी लिफ्ट’ (भारी वस्तु कक्षा में स्थापित करने में सक्षम) रॉकेट है जैसा कि नासा उल्लेख करता है। इसमें अबतक प्रक्षेपित रॉकेटों के मुकाबले सबसे शक्तिशाली इंजन लगे हैं। यहां तक कि यह रॉकेट वर्ष 1960 एवं 1970 के दशक में चंद्रमा पर मनुष्यों को पहुंचाने वाले अपोलो मिशन के सैटर्न पंचम प्रणाली से भी शक्तिशाली है।
यह नई तरह की रॉकेट प्रणाली है क्योंकि इसके मुख्य इंजन दोनों तरल ऑक्सीजन और हाइड्रोजन प्रणाली का सम्मिश्रण है, साथ ही अंतरिक्ष यान से प्रेरणा लेकर दो ठोस रॉकेट बूस्टर भी लगे हैं। यह वास्तव में अंतरिक्ष यान (स्पेस शटल) और अपोलों के सैटर्न पंचम रॉकेट को मिलाकर तैयार हाइब्रिड स्वरूप है। यह परीक्षण बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि ऑरियन क्रून कैप्सूल का वास्तविक कार्य देखने को मिलेगा। यह प्रशिक्षण चंद्रमा के अंतरिक्ष वातावरण में करीब एक महीने होगा जहां पर विकिरण का उच्च स्तर होता है।
अपोलो के बाद सबसे तेज गति वासा कैप्सूल होगा
यह कैप्सूल के ऊष्मा रोधक कवच (हीट शिल्ड) के परीक्षण के लिए भी यह महत्वपूर्ण है जो 25 हजार मील प्रति घंटे की रफ्तार से पृथ्वी पर लौटते समय घर्षण से उत्पन्न होन वाली गर्मी से कैप्सूल और उसमें मौजूद लोगों को बचाता है। अपोलो के बाद यह सबसे तेज गति से यात्रा करने वाला कैप्सूल होगा, इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि ऊष्मा रोधी कवच ठीक से काम करे।
यह मिशन अपने साथ छोटे उपग्रहों की श्रृंखला को ले जाएगा जिन्हें चंद्रमा की कक्षा में स्थापित किया जाएगा। ये उपग्रह पूर्व सूचना देने का काम करेंगे जैसे हमेशा अंधेरे में रहने वाले चंद्रमा के गड्ढों (क्रेटर) पर नजर रखने का काम, जिनके बारे में वैज्ञानिकों का मनना है कि उनमें पानी है। इन उपग्रहों की मदद से पानी में विकिरण की गणना की जानी है ताकि लंबे समय तक ऐसे वातारण में रहने वाले मनुष्यों पर पड़ने वाले असर का आकलन किया जा सके।