नई दिल्ली (अमरेन्द्र कुमार)
मिथिला राज्य के संदर्भ में मिथिला स्टूडेंट यूनियन (MSU) ने 21 अगस्त को जंतर मंतर दिल्ली में आयोजित मिथिला राज्य के समर्थन में विशाल जनसभा का आयोजन प्रदेश
प्रभारी जयप्रकाश झा एवं रणजीत झा के नेतृत्व में आयोजित किया। विदित हो कि मिथिला राज्य की मांग बहुत पुराना है लेकिन आजतक इसपर संगठित प्रयास नहीं हो सका।

इस बार MSU ने संगठित प्रयास शुरू किया है जिसमें जमीन से लेकर सोशल मीडिया एवम भीडिया स्तर पर भी लड़ाई लड़ी जा रही है।
विभिन्न क्षेत्रों से जमा हुए लगभग 10 हजार मैथिल लोगों के जनसभा को सम्बोधित करते हुए MSU के संस्थापक राष्ट्रीय अध्यक्ष अनूप मैथिल ने कहा कि उत्तरी बिहार का मिथिला क्षेत्र विकास के मामले में बहुत पिछड़ा इलाका है। यदि 6 करोड़ की जनसंख्या वाले गुजरात में IIT, NIT, IIM, IIIT, NIFT, सेंट्रल यूनिवर्सिटी आदि हो सकता है तो 6 करोड़ जनसंख्या वाले मिथिला में इनमें से एक भी क्यों नहीं है? उनको क्यों बुलेट ट्रेन, हमको क्यों जनसाधारण ट्रेन?
आगे उन्होंने कहा कि नीति आयोग के रिपोर्ट में अभी हाल में जारी हुआ था की बिहार के 17 सबसे गरीब और पिछड़े जिले मिथिला क्षेत्र में है। GDP ग्रोथ के हिसाब से हो प्रति व्यक्ति आय, औद्योगिक उत्पादन की बात हो अथवा कृषि उत्पादन, शिक्षा दर हो अथवा ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स, शहरीकरण की बात हो या पलायन अथवा अन्य कोई भी वैकाशिक मापदंड…
मिथिला क्षेत्र पूरे देश में सबसे पीछे है। बाढ़ जैसी आपदा झेलने वाला 6 करोड़ से अधिक जनसंख्या का यह क्षेत्र सिर्फ सस्ता मजदूर सप्लाई करने वाला ले
जोन है देश के लिए। तो क्या देश की सरकार को इस क्षेत्र को आगे बढ़ाने के लिए कोई विशेष प्रयास नहीं करना चहिए ? मिथिला के विकास के लिए आज तक स्पेशल पैकेज कभी नहीं मिला मिलेगा। अब हमें अपना राज्य चाहिए। हम एक अलग राज्य के रूप में हमेशा से रहे हैं। हमारी एक अलग भाषा, संस्कृति, भूगोल इतिहास रहा है।

संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष अदित्य मोहन ने कहा कि “मिथिला राज्य” की मांग होते ही कई लोग हड़बड़ा जाते हैं। विभाजन एक भारी शब्द है। इस शब्द से कई इमोशनल स्मृतिया जुड़ी हुई है जिसकी वजह से अधिकांश लोग घबराहट महसूस करते हैं, ये एक साइकोलॉजिकल फेनोमेना है। झारखंड विभाजन के बाद बच गए शेष बिहारियों को बताया गया के झारखंड विभाजन की वजह से आपके सारे खनिज संसाधन चले गए हैं और यही आपके राज्य के गरीबी की वजह है, जबकि ये एक झूठ था जिसका इस्तेमाल राजनीतिक नेतृत्व ने अपने खामियों को छुपाने हेतु किया। विभाजन हमेशा गलत ही नहीं होता। कई बार इसके अच्छे परिणाम भी होते हैं। जब 1912 में बंगाल से बिहार अलग हुआ था, तब भी तो विभाजन ही हुआ था। जब बाद में बंगाल से विभाजित हुए बिहार से उड़ीसा अलग हुआ, तब भी विभाजन ही था। लेकिन क्या ये सब जरूरी नहीं था। जिनके मन में झारखंड विभाजन का मनोवैज्ञानिक दंश जमा हुआ है उन्हें बिहार से विभाजित होकर अलग मिथिला राज्य की बात सुनने पर सेंसिटिव महसूस होता है। जबकि इसमें कुछ भी सेंसिटिव नहीं है। परिवार बड़ा होने के बाद संयुक्त परिवार में सभी सदस्यों पर ठीक से ध्यान देना नहीं हो पाता, सब की समस्याएं और जरूरतें अलग-अलग है, उन्हें एक ही नजर से देखने से
नई समस्याएं उत्पन्न होती है। 12 करोड़ की जनसंख्या को अब एक प्रशासनिक यूनिट में संभालना दिक्कत बढ़ा रहा है। नया मिथिला राज्य बनाइए, जिलों की संख्या बढ़ाईए,सबका भला होगा।
मौके पर देश भर से आये MSU के सेनानियों की भाड़ी भीड़ सुबह से ही देखने को मिली।