न्यूज़ डेस्क : (GBN24)
प्रीत
Supreme Court: तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं(Muslim Women) के अधिकारों को लेकर सुप्रीम कोर्ट(Supreme Court) ने 10 जुलाई को एक बड़ा फैसला किया है. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने साफ किया गया है कि जैसे दूसरे धर्मों की महिला की तरह ही एक तलाकशुदा मुस्लिम महिला को भी सीआरपीसी की धारा 125 के तहत गुजारा भत्ता लेने का अधिकार है.
सुप्रीम कोर्ट ने 10 जुलाई 2024 को जो फैसला दिया है ये फैसला ठीक वैसे ही दिया गया है जैसे की 23 अप्रैल 1985 को शाहबानो मामले में दिया गया था. सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले में साफ कर दिया है कि मुस्लिम तलाकशुदा महिला सीआरपीसी की धारा 125 के तहत अपने पति से गुजारा भत्ता पाने की पूरी तरह से हकदार है.
आपको बता दे की इसी तरह शाहबानो मामले में भी सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे ही फैसला सुनाया था. जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह इन दोनों जजों ने अलग-अलग फैसला सुनाया है परन्तु दोनों की राय एक ही थी.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले में क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की बेंच ने 99 पन्नों के फैसले को देते हुए यह कहा है कि सीआरपीसी की धारा 125 जो की सभी शादीशुदा महिलाओं पर लागू होती है, जिनमें शादीशुदा मुस्लिम महिलाएं भी शामिल हैं.सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में साफ किया है की केवल गैर मुस्लिम महिला ही नहीं बल्कि अब से तलाक़शुदा मुस्लिम महिला भी सीआरपीसी की धारा 125 के तहत गुजारा भत्ता पाने के हक़दार है.
तीन तलाक वाली महिलाओं का क्या?
तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले और सरकार के नए कानून ने मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों को एक और महत्वपूर्ण सुरक्षा प्रदान की है। अगस्त 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक को असंवैधानिक घोषित किया था, तथा 2019 में मोदी सरकार ने इस को अपराध की श्रेणी में डाल दिया गया । इससे मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक के माध्यम से होने वाली अनावश्यक उत्पीड़न से राहत मिलेगी ।
सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस नागरत्ना ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि अगर किसी भी मुस्लिम महिला को अवैध रूप से तीन तलाक दिया जाता है, तो उसे भी सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भाता देना होगा साथ ही सुप्रीम कोर्ट में कहा गया है कि तलाकशुदा मुस्लिम महिला को सीआरपीसी की धारा 125 से बाहर नहीं रखा जा सकता है, फिर चाहे उसे किसी भी कानून के तहत तलाक दिया गया हो।
इस फैसले का सबसे बड़ा महत्व यह है कि यह मुस्लिम महिलाओं को समान अधिकार प्रदान करता है और उन्हें तलाक के बाद भी आर्थिक सुरक्षा देता है। यह स्पष्ट करता है कि किसी भी कानून के तहत तलाक देने पर गुजारा भत्ता में असमानता नहीं की जा सकती है।
जानिए क्या है सीआरपीसी की धारा 125?
सीआरपीसी की धारा 125 में महिलाओं बच्चों और माता-पिता को मिलने वाले गुजारा भत्ता का प्रावधान है. नए कानून भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) में ये प्रावधान धारा 144 में रखा गया है.
आपकी जानकारी के लिए बता दे की ये धारा बताती है कि कोई भी पुरुष किसी भी तरीके से अलग होने की स्थिति में अपनी पत्नी, बच्चे और माता-पिता को गुजारा भत्ता देने से इनकार नहीं कर सकता. इसमें नाजायजव् तथा वैध बच्चों को भी शामिल किया गया है. यह धारा साफ करती है कि पत्नी, बच्चे और माता-पिता अगर अपना खर्चा नहीं उठापति है तो पुरुष को ही उन्हें हर महीने गुजारा भत्ता देना होगा.
गुजारा भत्ता की रकम मजिस्ट्रेट द्वारा तय की जायगी . पत्नी को गुजारा भत्ता तब मिलेगा जब या तो वो खुद तलाक ले या उसका पति तलाक दे. और पत्नी को तब तक गुजारा भत्ता देना होगा जब तक महिला दोबारा शादी नहीं कर लेती.तथा इस धारा में ये भी प्रावधान है कि अगर कोई पत्नी बिना किसी कारण के पति से अलग होती है है या किसी अन्यऔर पुरुष के साथ रहती है या फिर आपसी सहमति से अलग होते है तो वो गुजारा भत्ता पाने की हकदार नहीं होगी.
क्यों माना जा रहा इसे शाहबानो 2.0?
23 अप्रैल 1985 को सुप्रीम कोर्ट ने शाहबानो मामले में भी ऐसा ही बड़ा फैसला दिया था. इंदौर की रहने वाली शाहबानो को उनके पति ने उन्हें तीन तलाक दे दिया था. तब सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था कि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत शाहबानो अपने पहले पति से गुजारा भत्ता पाने की हकदार है.
सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच ने 10 जुलाई 2024 को एक बार फिर इस मामले को साफ कर दिया कि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत तलाकशुदा कोई भी मुस्लिम महिला तथा गैर मुस्लिम महिला गुजारा भत्ता की मांग कर सकती है.