न्यूज़ डेस्क : (GBN24)
प्रीत
Namibia or Africa के बाद अब कई दूसरे देशों से चीते भारत लाने की योजना बनाई जा रही है. Namibia or Africa के अलावा अब भारत में नए देशों से भी चीते मंगाने पर विचार विमर्श किया जा रहा है. इसका एक बड़ा कारण Namibia or Africa देशों से लाए गए चीतों में देखी गई जैव-लय (biorhythm) संबंधी परेशानियां हैं. जिस वजह से अब चीतों को दूसरे देश से लेने के बारे में विचार किया जा रहा है.
दरसअल जिन देशों से चीते भारत मंगाने पर विचार किया जा रहा है, उन देशों के नाम सोमालिया, केन्या, तंजानिया और सूडान हैं. बता दें कि उत्तरी और दक्षिणी गोलार्ध (Northern and Southern Hemispheres) के बीच सर्केडियन लय में अंतर होता है. भारत उत्तरी गोलार्ध में आता है, जबकि दक्षिण Namibia or Africa दक्षिणी गोलार्ध में आते है.
Namibia or Africa से भारत लाये गए तीन चीतों की हो गई थी मौत
Namibia or Africa से भारत लाए गए चीतों ने पिछले साल अफ्रीका में पड़ने वाली सर्दियों के मौसम के अनुसार अपनी त्वचा पर मोटी खाल डेवलप कर ली थी. परन्तु भारत में उस समय ग्रीष्म और मानसून ऋतु चल रही होती है, जिसके चलते इनमें से 3 चीतों (एक नामीबियाई मादा और दो दक्षिण अफ्रीकी नर) को सर्दियों की मोटी कोट के नीचे पीठ और गर्दन पर काफी घाव हो गए थे. इन घावों में कीड़े लगने से ब्लड संक्रमण भी हो गया था, ब्लड संक्रमण के बाद तीनों की मौत हो गई थी.
अभी चीतों को लाने के लिए किसी देश से नहीं किया गया संपर्क
एजेंसी के सूत्रों की जानकारी के मुताबिक Namibia or Africa के चीतों ने एक बार फिर सर्दियों की मोटी कोट विकसित कर लिया है. इन आशंकाओं के चलते हुए भी नए चीते लाने वाली लिस्ट में दक्षिणी गोलार्ध के देशों को फिर से शामिल किया गया है. बता दें कि Namibia or Africa सहित कई देशों के साथ बातचीत चल रही है, हालांकि अभी औपचारिक रूप से किसी से कोई भी संपर्क नहीं किया गया है.
चीतों की तीसरी पीढ़ी
बायोरिदमिक समायोजन की कमी के कारण कुछ चीते अपने फर परिवर्तन के दौरान एक्टोपैरासिटिक संक्रमण के शिकार हो गए थे. ऐसा उनके पहले के निवास स्थान की जलवायु परिस्थितियों के साथ सही रूप से तालमेल ना बिठाने से होया था. बता दें की जीवित चीतों की तीसरी संतान पीढ़ी अब अधिक प्रतिरोधी होगी और कूनो की परिस्थितियों के लिए बेहतर रूप से अनुकूलित भी होगी.’
केन्या-सोमालिया को प्राथमिकता क्यों?
बता दें कि गोपाल ने इस मुद्दे पर मृत्यु की संभावना को स्वीकार किया था. उन्होंने सिफारिश भी की थी कि भविष्य में पुनःप्रवेश के लिए चीतों को जैव-लय संबंधी जटिलताओं से बचने के लिए केन्या या सोमालिया जैसे उत्तरी गोलार्ध के देशों से मंगाया जाना चाहिए.
दरअसल भारत की जलवायु परिस्थिति बहुत अलग है इसलिए, यह बहुत महत्वपूर्ण है कि राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण केन्या और सोमालिया जैसे उत्तरी गोलार्ध के देशों से नए चीतों को लाने को लेकर अधिक प्राथमिकता दी जा रही है.