न्यूज़ डेस्क : (GBN24)
lok sabha election 2024: 2024 का लोकसभ चुनाव अब धीरे धीरे नजदीक आ रहा है जिसको लेकर के सभी पार्टी और नेतागण जनता को रिझाने में भरपूर मेहनत करते नजर आ रहे है। और करे भी भला क्यों ना आज का मेहनत भविस्य में आराम भी तो देगा। लेकिन यहाँ पर सवाल ये उठता है की आखिर जनता किसको सत्ते में लाएगी ? पहले भी आपने देखा होगा जब भी चुनाव का वक़्त आता है उससे कुछ दिन पहले अजेंडे के सारे कामों में से नेता लोग एक दो काम की पूर्ति कर के जनता को बताती है की हमने ये काम किया वो काम किया। लेकिन असल में वो सिर्फ वोट बैंक के उद्देश्य से किया जाता है।
वही आपको बता दे की लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस ने शुक्रवार को अपना घोषणा पत्र जारी कर दिया है. घोषणा पत्र में कई वादे किए किए गए हैं, लेकिन सवाल ये है कि अगर कोई राजनीतिक पार्टी अपने manifesto में किए गए वादों को पूरा नहीं कर पाती है तो क्या उन पर कार्रवाई होगी? ये सवाल इस लिऐ अहम है क्यों की चुनाव से पहले सभी पार्टी तो manifesto में बारे बारे वादा तो कर लेते है लेकिन जब सत्ता में आते है तो वो भूल जाते है की वो कोई वादा भी किए है .
लोकसभा चुनाव 2024 के लिए कांग्रेस ने शुक्रवार को अपना घोषणा पत्र यानी manifesto जारी किया. manifesto में 5 न्याय और 25 गारंटियों पर फोकस है, जिनमें किसान न्याय, नारी न्याय, युवा न्याय, श्रमिक न्याय, हिस्सेदारी न्याय शामिल हैं. घोषणा पत्र में कई वादे किए किए गए हैं जैसे- जाति जनगणना कराना और गरीब परिवार की एक महिला को हर साल 1 लाख रुपए देना. लेकिन कई बार ऐसा देखने को मिलता है जब पार्टी ने अपनी वादे को पूरा नहीं किया तो क्या उन पर कार्रवाई होगी? ऐसे में सवाल है कि अगर कोई राजनीतिक पार्टी अपने मेनिफेस्टो में किए गए वादों को पूरा नहीं कर पाती है तो क्या उन पर कार्रवाई होगी? अगर होगी तो क्या एक्शन लिया जा सकता है?
क्या होता है घोषणा पत्र पहले ये जान लीजिये
घोषणा पत्र बड़े पैमाने पर जनता के लिए एक Benchmark के रूप में काम करता है जिसमें संबंधित राजनीतिक दल की विचारधारा और जनता के लिए उसकी नीतियों और कार्यक्रमों का ब्योरा होता है. दलों के manifesto की तुलना करके मतदाता फैसला ले पाते हैं कि उन्हें किस पार्टी को वोट देना है. ऐसा देखा गया है कि कई पार्टियां manifesto में तो बड़े-बड़े ऐलान करती है, लेकिन सत्ता में आने के बाद वो किए हुए वादों को निभाने में 100 प्रतिशत सफल नहीं हो पाती. क्या वो अपने वादों को निभाने के लिए कानूनी तौर पर पीड़ित हैं?
चुनावी घोषणा पत्र और पार्टियों को उसमें दिए वादों को पूरा करने का मामला एक से ज्यादा बार अदालत पहुंचा है. साल 2015 में सुप्रीम कोर्ट में इसी मामले पर वकील मिथिलेश कुमार पांडे ने जनहित याचिका दायर की थी. हालांकि, याचिका को मुख्य न्यायाधीश HL Dattu और न्यायमूर्ति Amitava Roy की पीठ ने यह कहकर खारिज कर दिया कि “क्या कानून में कोई प्रावधान है जो घोषणा पत्र में किए गए वादों को किसी राजनीतिक दल के खिलाफ लागू करने क़ाबिल बनाता है?” इसका निष्कर्ष ये था कि चुनावी घोषणा पत्र में किए गए वादों को पूरा करने के लिए पार्टी कानूनी रूप से बाध्य नहीं है.
2022 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर हुई थी, जिसमें 2014 के लोकसभा चुनावों के दौरान तत्कालीन पार्टी अध्यक्ष अमित शाह द्वारा किए गए वादों को पूरा न करने पर भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज करने की मांग की गई थी. लेकिन अदालत ने याचिका रद्द कर दी और कहा कि चुनाव घोषणा पत्र में किए गए वादों को पूरा करने में विफल रहने पर राजनीतिक दलों को दंडित नहीं किया जा सकता है. मामले की सुनवाई कर रहे न्यायमूर्ति दिनेश पाठक ने कहा था, ‘किसी भी राजनीतिक दल द्वारा जारी किया गया घोषणा पत्र उनकी नीति, विचारधारा और वादों का एक बयान है, जो बाध्यकारी नहीं है और इसे कानून की अदालतों के जरिए लागू नहीं कराया जा सकता है.’
ऐसा नहीं है कि राजनीतिक पार्टी चुनाव जीतने के लिए किसी भी तरह के वादे अपने घोषणा पत्र में कर सकते हैं. चुनाव के समय सभी दलों के बीच level playing field बना रहे, इसके लिए उच्चतम न्यायालय ने 2013 में चुनाव आयोग को निर्देश दिया था कि वो चुनाव घोषणा पत्र पर दिशा-निर्देश तैयार करें, जिसे आदर्श संहिता के हिस्से के रूप में शामिल किया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘ चुनाव घोषणा पत्र में किए गए वादों को RP एक्ट की धारा 123 के तहत ‘भ्रष्ट आचरण’ के रूप में नहीं माना जा सकता है, लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि किसी भी प्रकार की मुफ्त वस्तुओं को बांटना मतदाताओं को प्रभावित करता है. यह काफी हद तक स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव की जड़ को हिला देता है.’सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद चुनाव आयोग ने देशभर की राष्ट्रीय और राज्य स्तर की पार्टियों के साथ घोषणा पत्र को लेकर चर्चा की. इसके बाद जाकर आयोग ने घोषणा पत्र को लेकर दिशा-निर्देश तैयार किए हैं. वर्तमान में कोई भी पार्टी घोषणा पत्र में ऐसी बातें नहीं कर सकती जो संविधान के खिलाफ जाती हो.
ऐसे कई मामले सामने आए थे जिनमें नेता जनता को सीधा देने का वादा कर रहे थे. इस तरह के गतिविधियों को रोकने के लिए आयोग ने 2019 के अपने आदेश में कहा कि राजनीतिक दलों से उम्मीद की जाती है कि वो घोषणा पत्र में व्यापक रूप से financial आवश्यकताओं को पूरा करने के तरीकों को बताए. पार्टियों से यह भी कहा गया कि मतदाताओं का भरोसा केवल उन्हीं वादों पर हासिल किया जाना चाहिए जो पूरे किए जा सकते हैं.