अपराजिता
न्यूज़ डेस्क : (GBN24)
Lok Sabha Election 2024: जैसे-जैसे नजदीक आता जा रहा है वैसे-वैसे सियासी माहौल काफी गरम होता जा रहा है ,धर्म और जात-पात की राजनीती तो सभी पार्टियां करती है ,लेकिन इस बार के चुनाव में खुलेआम धर्म की राजनीती देखने को मिल रही है। अगर बात उत्तरप्रदेश की करें तो यहाँ बीजेपी की सरकार है, योगी सरकार है, जो सनातन धर्म को लेकर काफी कट्टर माने जाते है, वही विपक्ष में बैठी अखिलेश की सरकार लगातार मुस्लिमों पर दाव खेल रही है। समाजवादी पार्टी को यूपी में मुसलिमों की राजनीति करने वाला दल माना जाता रहा है, जबकि मोदी सरकार पर ये आरोप लगता रहता है कि वो हिन्दू-मुसलिमों के बीच किसी न किसी तरह ध्रुवीकरण करवाकर चुनाव जीतने का इंतजाम कर ही लेती है।
वहीं अगर 2022 के विधानसभा चुनाव को देखे तो मायावती पर भी ये आरोप लगे थे कि उन्होंने बड़ी संख्या में मुसलिम उम्मीदवार उतारकर एसपी की जीती सीटों को हरवाने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई थी ।अखिलेश यादव की पार्टी ने ये भी आरोप लगाए कि बीजेपी के साथ रणनीति के तहत मायावती जानबूझकर मुस्लिम वोट काटने के लिए ऐसा करती हैं और ध्रुवीकरण की राजनीति में बीजेपी को इसका फायदा हो जाता है। वही अगर देखा जाये तो कुछ हद तक ये दावा सही भी लगता है। लेकिन आप यहाँ पर ये जानकर काफी हैरान रह जाएंगे कि यूपी में इस बार ये पैटर्न नहीं दिख रहा है।अभी तक जारी किए सभी दलों के टिकटों को यदि देखें तो मायावती ने बेहद सटीक तरीके से प्रत्याशी चयन किया है। यही कारण है कि बीजेपी बेहद चौकन्ना हो गई है।
मोदी और योगी दौर…
एक दौर में यूपी की सियासत का हाल ये था कि 40 फीसदी से ज़्यादा मुस्लिम वोटर्स वाली सात लोकसभा सीटों पर किसी न किसी मुस्लिम नेता का सांसद बनना लगभग तय होता था। लेकिन दौर बदला और अब यूपी की सियासत ने तेजी से रंग बदल लिया है । जी हाँ, 2014 ऐसा साल था,जब एक भी मुस्लिम सांसद नहीं चुना गया था। और आजादी के बाद पहली बार ऐसा हुआ था। वैसे मुस्लिम मतदाता लंबे समय तक उत्तर प्रदेश में किंगमेकर की भूमिका अदा करते रहे हैं, लेकिन जब मोदी-योगी दौर शुरू हुआ तब सियासत ने ऐसी करवट बदली कि राजनीति अल्पसंख्यक से हटकर अब बहुसंख्यक समुदाय के इर्द-गिर्द सिमट गई। इसका आखिर क्या कारण है? ये एक बहुत बड़ा सवाल सामने उमड़ कर आता है।
किसको मिली कहाँ-कहाँ सीट?
37 फीसदी मुस्लिम वोटर वाली मेरठ लोकसभा सीट पर बीजेपी ने रामायण सीरियल में राम का किरदार निभाकर प्रसिद्ध हुए अरुण गोविल को उतारा है तो सपा ने भानु प्रताप सिंह और बसपा ने देववृत त्यागी को टिकट दिया है। तीनों ही बड़ी पार्टियों से हिंदू कैंडिडेट हैं, जबकि इससे पहले सपा और बसपा मुस्लिम कैंडिडेट उतारते रहे हैं। वही अगर 2019 की बात करें तो बसपा के याकूब कुरैशी, बहुत मामूली वोट से चुनाव हारे थे। यहां पर 37 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम वोटर हैं, उसके बाद भी किसी भी राजनीतिक दल ने मुस्लिम प्रत्याशी पर दांव नहीं खेला। बिजनौर लोकसभा सीट पर 40 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम मतदाता हैं, लेकिन सपा ने दीपक सैनी, बीजेपी के सहयोगी दल आरएलडी ने चंदन चौहान और बसपा ने चौधरी बिजेंद्र सिंह को कैंडिडेट बनाया. 2019 चुनाव में कांग्रेस से नसीमुद्दीन सिद्दीकी और 2014 में सपा से शाहनवाज राणा और आरएलडी से शाहिद सिद्दीकी चुनाव लड़े थे।
इसी तरह 26 फीसदी मुसलिम वोटर्स वाली बागपत सीट पर सभी दलों ने हिंदू प्रत्याशी उतारे हैं, जिसमें बसपा से प्रवीण बंसल, आरएलडी ने राजकुमार सांगवान और सपा ने मनोज चौधरी को टिकट दिया। 30 फीसदी मुसलिम वोटर्स वाली बरेली लोकसभा सीट पर बीजेपी ने छत्रपाल गंगवार, सपा ने प्रवीण ऐरन को उम्मीदवार बनाया है, जबकि बसपा ने अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं। लखीमपुर खीरी सीट पर सपा, बसपा और बीजेपी ने मुस्लिम के बजाय हिंदू प्रत्याशी पर ही दांव खेला है। इस बार सभी दलों ने हिन्दू प्रत्याशी उतारे हैं। फिरोजाबाद, लखनऊ, शाहाबाद की धौरहरा प्रतापगढ़, सीतापुर और देवरिया सहित डुमरियागंज व सुल्तानपुर सीट पर मुस्लिम चुनाव लड़ते रहे हैं, लेकिन इस बार कोई दल मुस्लिम चेहरे पर दांव खेलने से बच रहे हैं।
धर्म की राजनीती:
जब मोदी-योगी दौर शुरू हुआ, तब सियासत ने ऐसी करवट बदली कि राजनीति अल्पसंख्यक से हटकर अब बहुसंख्यक समुदाय के इर्द-गिर्द सिमट गई।इसका आखिर क्या कारण है? ये एक बहुत बड़ा सवाल सामने उमड़ कर आता है।
अगर इस सवाल पर गौर करें तो इससे ये बात तो साफ समझ आती है, की बीजेपी को धर्म की राजनीती काफी अच्छी तरह से करनी आती है, जिसका फायदा हमेशा उनको मिलता है ,और ये बात एसपी और बीएसपी को भी अच्छे से समझ में आ गयी है, कि बीजेपी ध्रुवीकरण की राजनीति करके हिन्दू वोटर्स को गोलबन्द कर लेती है- अगर मैदान में मुस्लिम प्रत्याशी है तो पहले की तरह अब अखिलेश या मायावती के कहने पर हिन्दू वोटर्स उनको वोट नहीं करते- सियासत में ये काफी बड़ा बदलाव आया है।
वैसे भी उनको लगता है कि मुस्लिम वोटर्स तो बीजेपी को वोट देंगे। खैर राजनीती में कब कहां कैसे पासा पलटेगा ये कोई नहीं कह सकता। और वैसे भी चारों तरफ मोदी योगी लहर साफ दिखाई दे रही है, क्यूंकि बीजेपी उनकी छवि को हमेशा से बरकरार रखी हुई है, लेकिन अन्य पार्टी अपने कामों में सुधार लाने के बजाये बीजेपी को निचा दिखाने में हमेशा से समय बर्बाद करती आ रही है। और उनकी आपसी गठबंधन भी इसलिए होती है। पर अब की जनता काफी समझदार हो चुकी है और उन्हें सिर्फ देश में विकास से मतलब है, उन्हें इस तरह की धर्म वाली राजनीती काफी अच्छे से समझ आती है, इसलिए अब जनता को पहले की तरह बरगलाना इतना आसान नहीं है।