न्यूज़ डेस्क : (GBN24)
सुप्रीम कोर्ट से स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) को झटका लगा है. इलेक्टोरल बॉन्ड (Electoral Bond) से जुड़ी जानकारी साझा करने की समय सीमा 30 जून तक बढ़ाने की एसबीआई की मांग को खारिज कर दिया गया है. सुप्रीम कोर्ट ने एसबीआई से मंगलवार यानी 12 मार्च तक सारी डिटेल साझा करने को कहा है. अब एसबीआई को मंगलवार तक डिटेल देनी होंगे. ऐसे में समझते हैं कि क्या इससे राजनीतिक पार्टियों की टेंशन बढ़ेगी? इलेक्टोरल बॉन्ड नहीं तो फिर क्या… अब कैसे कमा सकती हैं पार्टियां? चंदा जुटाने के और क्या हो सकते हैं विकल्प
साल 2017 में केंद्र सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम की घोषणा की थी. इसे 29 जनवरी 2018 से कानूनी रूप से लागू कर दिया गया था. तब तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा था कि इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम चुनावी चंदे में ‘साफ-सुथरा’ धन लाने और ‘पारदर्शिता’ बढ़ाने के लिए लाई गई है. इसके तहत, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की 29 ब्रांचों से अलग-अलग रकम के बॉन्ड जारी किए जाते हैं. इनकी रकम एक हजार रुपये से लेकर एक करोड़ रुपये तक होती है. इसे कोई भी खरीद सकता है और अपनी पसंद की पार्टी को दान दे सकता है.
योजना के तहत, इलेक्टोरल बॉन्ड जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर के महीनों में जारी होते हैं. हालांकि, इलेक्टोरल बॉन्ड से चंदा उन्हीं राजनीतिक पार्टियों को दिया जा सकता था, जिन्हें लोकसभा और विधानसभा चुनाव में कम से कम एक फीसदी वोट मिले हों.
अब ये समझते हैं की इससे कितना कमाती हैं पार्टियां?
इलेक्टोरल बॉन्ड की वैधता को चुनौती देने वालों में एक एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म (एडीआर) भी शामिल थी. एडीआर का दावा है कि मार्च 2018 से जनवरी 2024 के बीच राजनीतिक पार्टियों को चुनावी बॉन्ड के जरिए 16,492 करोड़ रुपये से ज्यादा का चंदा मिला है, चुनाव आयोग में दाखिल 2022-23 के लिए ऑडिट रिपोर्ट के मुताबिक, बीजेपी को 1,294 करोड़ रुपये से ज्यादा का चंदा इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए मिला. जबकि, उसकी कुल कमाई 2,360 करोड़ रुपये रही. यानी, बीजेपी की कुल कमाई में 40 फीसदी हिस्सा इलेक्टोरल बॉन्ड का रहा.
अब देखने वाली बात है की सबसे ज्यादा चुनावी बॉन्ड बीजेपी को हासिल होती हैं
इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर सबसे बड़ी चिंताओं में से एक ये भी थी कि इससे सबसे ज्यादा फायदा सत्ताधारी पार्टी को होता है. और वो इसका अनुचित फायदा उठाती हैं. विधानसभा चुनाव के वक्त भी पार्टियों की फंडिंग बढ़ जाती है
अब क्या हैं विकल्प?
जब चुनावी बॉन्ड नहीं होते थे, तब पार्टियों को चेक से चंदा दिया जाता था. चंदा देने वाले का नाम और रकम की जानकारी पार्टियों को चुनाव आयोग को देनी होती थी. वहीं, लगभग चार दशक पहले पार्टियों के पास एक रसीद बुक हुआ करती थी. इस बुक को लेकर कार्यकर्ता घर-घर जाते थे और लोगों से चंदा वसूलते थे. इलेक्टोरल बॉन्ड रद्द हो जाने के बाद पार्टियों के पास और भी रास्ते हैं जहां से वो कमाई कर सकतीं हैं. इनमें डोनेशन, क्राउड फंडिंग और मेंबरशिप से आने वाली रकम शामिल है. इसके अलावा कॉर्पोरेट डोनेशन से भी पार्टियों की कमाई होती है. इसमें बड़े कारोबारी पार्टियों को डोनेशन देते हैं.
महंगे होते जा रहे चुनाव
एडीआर की रिपोर्ट बताती है कि 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान सात राष्ट्रीय पार्टियों को साढ़े पांच हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का फंड मिला था. इन पार्टियों ने दो हजार करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च किया था.
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि SBI को 12 मार्च तक इन इलेक्टोरल बॉन्ड्स से जुड़ी जानकारियों को जारी करना है. 15 मार्च की शाम 5 बजे से पहले ECI अपनी वेबसाइट पर इसे कंपाइल करके पब्लिश करेगी..कोर्ट ने कहा कि SBI को नोटिस दिया जा रहा है कि अगर SBI इस आदेश में बताई गई समय सीमा के भीतर निर्देशों का पालन नहीं करता है तो कोर्ट जानबूझकर अवज्ञा के लिए उसके खिलाफ कार्रवाई कर सकता है..
इलेक्टोरल बॉन्ड इसलिए लाए गए थे, ताकि राजनीतिक पार्टियों की फंडिंग जुटाने के तरीके में पारदर्शिता लाई जा सके. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को ‘असंवैधानिक’ करार देते हुए रद्द कर दिया है.