तमन्ना चौधरी
न्यूज़ डेस्क : (GBN24)
Muktinath Temple उन आठ पवित्र मंदिरों में से एक है जो अपने आप उत्पन्न हुई हैं। आपको बतादें की इस मंदिर के दक्षिण में बर्फ से ढकी अन्नपूर्णा पर्वतमाला की एक सुंदर पृष्टभूमि और उत्तर में तिब्बती पठार का मनोरम दृश्य है। तीर्थयात्री जन्म और पुनर्जन्म के चक्र से छुटकारा पाने और निर्वाण प्राप्त करने के लिए मंदिर जाते है। इस मंदिर का हिंदुओं और बौद्ध दोनों के लिए बहुत महत्व है क्योंकि माना जाता है कि भगवान विष्णु को यहां वृंदा के श्राप से मुक्ति मिली थी। मुक्तिधारा नाम के मंदिर के पीछे 108 जलधाराएं हैं जहां बुलहेड और दो कुंडों से लगातार जमी हुई जलधारा बह रही है। आम धारणा के अनुसार, जो पवित्र जल में स्नान करता है, वह मोक्ष प्राप्त कर सकता है।
एक बार भगवान शिव और राक्षस जलंधर के बीच में युद्ध हुआ था लेकिन जलंधर को युद्ध में कोई भी देवता हरा नहीं पाते थे क्यूंकि जलंधर की पत्न्नी वृंदा भगवान शिव की पूजा-अर्चना करती थी जिसकी वजह से जलंधर युद्ध में हारता नहीं था। देवताओं के लिए जलंधर को हराना मुश्किल होता जा रहा था इसी बात से परेशान होकर सभी देवताओं ने उसे हराने के लिए एक चाल चली। भगवान विष्णु ने जलंधर का रूप धारण किया और उसकी पत्नी के सामने चले गए, जिससे उसकी पत्नी ने पूजा रोक दी और भगवान विष्णु को जलंधर के रूप में अपना पति मान बैठी तभी उसी समय भगवान शिव ने जलंधर का वध कर दिया। बाद में जब जलंधर की पत्नी वृंदा को यह बात पता चली तो उसने भगवान विष्णु को पत्थर बनने का श्राप दे दिया जिसकी वजह से Muktinath की उत्पत्ति हुई और तब से वहां भगवान विष्णु की पूजा होने लगी।
भगवान विष्णु को श्राप देने के बाद वृंदा ने आत्महत्या कर ली और वह राख बन गई जिसे आज तुलसी के नाम से जाना जाता है। इसलिए Muktinath Temple के दर्शन करने वाले तीर्थयात्रियों को शालिग्राम की पूजा करते समय एक तुलसी का पत्ता अवश्य मिलता है। Muktinath Temple जाने का सबसे अच्छा समय मार्च, अप्रैल, मई, जून, सितंबर, अक्टूबर और नवंबर के महीने शामिल हैं। इन महीनों के दौरान मौसम बहुत साफ रहता है और आसपास के इलाकों में बर्फ से ढके पहाड़ों को देखा जा सकता है। इस Temple में भगवान विष्णु, देवी लक्ष्मी, सरस्वती, जानकी, गरुड़, लव-कुश और सप्त ऋषियों की धातु की मूर्तियां हैं। भगवान विष्णु की मुख्य मूर्ति सोने से बनी है और काफी ऊंची है। देवी लक्ष्मी और देवी पृथ्वी की दो मूर्तियां भगवान विष्णु के बाएं और दाएं खड़ी हैं।