न्यूज़ डेस्क : (GBN24)
Earth Crises: मानव गतिविधि और प्राकृतिक संसाधनों के बढ़ने से पृथ्वी (Earth) का संकट लगातार गहराता जा रहा है। आए दिन धरती के किसी न किसी हिस्से में प्राकृतिक तबाही देखने को मिल रही है। Nature का ऐसा व्यवहार सोचने पर मजबूर कर रहा है कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? यह तथ्य किसी से छुपा नहीं कि इन सब घटनाओं के मूल में जलवायु परिवर्तन है। जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणाम वर्ष भर नए-नए रूप में देखने को मिल रहे हैं.
पिछले दिनों दुबई शहर में Nature ने वो कहर बरपाया कि पूरा दुबई शहर जलमग्न हो गया। तेज तूफान और बारिश से पूरा दुबई शहर कराह उठा। 16 अप्रैल को हुई घनघोर बारिश ने वहां जनजीवन अस्त-व्यस्त कर दिया। वहां एक ही दिन में 250 मिलीमीटर से भी अधिक बरसात हुई। दुबई में इतनी बरसात दो वर्षों में होती है। दुबई की सारी चकाचौंध प्रकृति के एक झटके से बेरौनक हो गई।
उधर बीते दिनों पाकिस्तान के बलूचिस्तान में सामान्य से 256 प्रतिशत अधिक बारिश हुई है. पूरे पाकिस्तान में इस महीने सामान्य से 61 प्रतिशत अधिक बारिश से 80 से अधिक लोगों की जान चली गई और सैकड़ों घर क्षतिग्रस्त हो गए ।
मौसम विभाग की माने तो हिमाचल प्रदेश में भी अप्रैल माह में हिमपात देखने को मिल सकता है और वह भी उस समय जब देश के कई हिस्सों में समय से पहले गर्म हवाएं चल रही हैं।
तेजी से जलवायु मे हो रहा है परिवर्तन
20वीं सदी के मध्य के बाद से मानवीय गतिविधियों और जीवाश्म ईंधन के जलने से पृथ्वी की जलवायु में तेजी से परिवर्तन हो रहा है जिसके कारण पृथ्वी के वायुमंडल में ताप-रोधी ग्रीनहाउस गैस का स्तर बढ़ रहा है, ग्रीनहाउस गैस का स्तर बढ़ने से पृथ्वी की औसत सतह का तापमान बढ़ रहा है। जिससे जलवायु मे तेजी से परिवर्तन हो रहा हैं,
बर्फबारी पर पड़ रहा है गहरा असर
जलवायु परिवर्तन के कारण अब बर्फबारी सर्दियों के शुरूआती महीनों की बजाय गर्मियों के शुरुआती महीनों में होने लगी है। हिमाचल प्रदेश में जहां इस बार नवंबर, दिसंबर और जनवरी में नाम मात्र की बर्फबारी हुई, वहीं मार्च और अप्रैल में रिकार्ड तोड़ बर्फबारी देखने को मिली है।
वैश्विक तापमान में वृद्धि
1880 के बाद से औसत वैश्विक तापमान में लगभग एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है। वैज्ञानिकों को आशंका है कि 2035 तक औसत वैश्विक तापमान अतिरिक्त 0.3 से 0.7 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है।
ज्यादा तेजी से गर्म हो रहा है एशिया
एशिया वैश्विक औसत से भी कहीं ज्यादा तेजी से गर्म हो रहा है। 1961 से 1990 की अवधि के बाद से देखें तो इस क्षेत्र में तापमान में होती वृद्धि की प्रवृत्ति करीब दोगुनी हो गई है। आंकड़ों के मुताबिक एशिया में 2023 में दर्ज औसत तापमान 1961 से 1990 के औसत तापमान की तुलना में 1.87 डिग्री सेल्सियस ज्यादा दर्ज किया गया है।
ग्लोबल वार्मिंग है तापमान मे वृद्धि की बड़ी वजह
पृथ्वी के वातावरण में सूरज की गर्मी को कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन अपने अंदर रोकती हैं। ये ग्रीनहाउस गैस (GHG) वायुमंडल में प्राकृतिक रूप से भी मौजूद हैं। मानव गतिविधियों, विशेष रूप से बिजली वाहनों, कारखानों और घरों में जीवाश्म ईंधन (यानी, कोयला, प्राकृतिक गैस, और तेल) के जलने से कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य ग्रीनहाउस गैसों को वायुमंडल में छोड़ा जाता है। पेड़ों को काटने सहित अन्य गतिविधियां भी ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन करती हैं। वायुमंडल में इन ग्रीनहाउस गैसों की उच्च सांद्रता पृथ्वी पर अधिक गर्मी बढ़ाने के लिए जिम्मेवार है, जिससे वैश्विक तापमान में वृद्धि होती है। जलवायु वैज्ञानिक मानते हैं कि ग्लोबल वार्मिंग के पीछे मानव गतिविधियां मुख्य है।
जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग का क्या है समाधान
जलवायु परिवर्तन समाधानों का मूल ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करना है, जिसे जल्द से जल्द शून्य पर लाना होगा। जैसा कि पहले कहा गया है, यह चुनौतीपूर्ण हो सकता है लेकिन यह पूरी तरह से असंभव नहीं है। जब संयुक्त प्रयास किए जाते हैं तो ग्लोबल वार्मिंग को रोका जा सकता है। साथ ही साथ कार का उपयोग कम करने, इलेक्ट्रिक वाहनों पर स्विच करने और हवाई यात्रा को कम करने से न केवल जलवायु परिवर्तन को रोकने में मदद मिलेगी, बल्कि वायु प्रदूषण भी कम होगा। इसके लिए, व्यक्तियों और सरकारों, दोनों को इसे प्राप्त करने की दिशा में कदम उठाने होंगे।